ऋषिकेश की दिव्यांग नीरजा के बुलंद हौसले को मौत भी नहीं छू पाई,सेवा ही धर्म को बनाया मिशन

आर्थिक मदद के साथ असहाय लोगों के लिए बनी तारणहार
-अंतर्राष्ट्रीय पैरा ओलंपिक खिलाड़ी सेवा से बनी प्रेरणास्रोत
-राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जीते हैं पदक

ऋषिकेश, 13 जून  । हौसलेंं यदि बुलंद हो तो उड़ने के लिए पंखों की आवश्यकता नहीं, इस कहावत को चरितार्थ किया है, ऋषिकेश की एक दिव्यांग अंतरराष्ट्रीय पैराओलंपिक खिलाड़ी नीरजा गोयल ने जिसने कोरोना संक्रमण काल में बिना किसी सरकारी सहायता के निराश्रित व असहाय जानवरों और कोरोना संक्रमण से जूझ रहे लोगों के अलावा जरूरतमंद लोगों तक राशन से लेकर दवाइयां ,मास्क, सैनिटाइजर ,ऑक्सीमीटर तथा पक्का भोजन नियमित रूप से उपलब्ध करवाकर अन्य संस्थाओं को भी आईना दिखाने का कार्य किया है।
जो कि अब भी निरंतर जारी है। अंतरराष्ट्रीय पैराओलंपिक खिलाड़ी नीरजा गोयल की दर्द भरी कहानी एक प्रेरणा स्रोत है।

नीरजा देवभूमि चेरिटेबल ट्रस्ट संस्थापक व पैरा बैडमिंटन अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी नीरजा गोयल का जन्म 20 फरवरी 1980 को कानपुर में अपने नैनीहाल में हुआ। जिनके पिता स्व. नंदकिशोर गोयल व माता का नाम कुसुम गोयल है। वह परिवार में सबसे बड़ी हैं, जिनके भाई देव गोयल, बहन गौरी गोयल (विवाहित) तथा सबसे छोटी बहन नुपूर गोयल है।

नीरजा जन्म से दिव्यांग नहीं थी, अन्य बच्चों की तरह यह भी नाॅर्मल पैदा हुई थी। मगर, जब वह आठ माह की थी, उसे पोलियो इंजेक्शन लगाने के महज तीन दिन में ही पैरालाइज की दिक्कत हुईं। जिसमें पोलियो का इंजेक्शन लगाने वाले डाॅक्टर की लापरवाही सामने आई। तहकीकात करने के बाद पता चला था कि उन्हें एक्पाइयरी डेट का इंजेक्शन लगा दिया गया था। उसके बाद अन्य डाॅक्टर से इलाज चला। लेकिन दुर्भाग्य देखिए उस डाॅक्टर का भी निधन हो चुका था । इसके बाद से वह कभी अपने पैरो पर खड़ी नहीं हो पाई।

नीरजा बताती हैं ,कि जब वह पांच वर्ष की थी। और उन्होंने होश संभाला।, तब देखा कि उनके पिता अत्यधिक शराब का सेवन किया करते थे। घर का माहौल भी सही नहीं था। इस कारण उनकी प्रारंभिक शिक्षा भी नहीं हो सकी, पिता की शराब की लत के चलते परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होती चली गई। रिश्तेदारों ने भी किसी भी तरह का कोई सपोर्ट नहीं दिया।

नीरजा बताती है कि जब वह 10 साल की थी कि
पिता की मारपीट के चलते एक दिन मां ने घर छोड़कर जाने की ठानी, चूंकि हम सभी भाई बहन पिता के व्यवहार से डरते थे, तो हमने मां को घर छोड़कर जाने से रोका, ओर एक बर्तन की दुकान मां ने जैसे-तैसे खोली,वह परिवार में बड़ी थी ,तो उसी ने दुकान सहित परिवार को संभाला। महज, एक साल बाद ही पिता का स्वर्गवास हो गया।

बर्तन की दुकान से भी परिवार का गुजर बसर नहीं चल पाता था। यहां तक कि भोजन भीपरिवार को नसीब होता था। मगर,उन्होंने हिम्मत नहीं हारी, और किसी के आगे हाथ न फैलाकर उतने में ही संतुष्ट किया। कहते हैं भगवान के घर देर है पर अंधेर नहीं। एक समय ऐसा आया, जब दुकान का काम अच्छा चलने लगा।

14 साल की उम्र में फिर उन्हें चोट लगने के कारण दोनों पैरो में पैरालाइज हो गया। इस कारण तीन साल तक बेड में ही रहना पड़ा। वह दौर उन्हें मौत से भी भयंकर लगता था, वह हर समय भगवान से मौत की इच्छा करती थी। उस समय उनका भाई दुकान संभालता था। किस्मत ने यहां भी पीछा नहीं छोड़ा ,और उनके बेड रेस्ट होने के महज दो महीने बाद दुकान संभाल रहे भाई को मिर्गी के दौरे की दिक्कत होनी शुरू हो गई। और एक बार पुनः दुकान का काम ठप होता चला गया। यहां तक कि दोनों भाई बहनों के इलाज के लिए भी खर्च नहीं निकल पाता था। जिसके बाद पुनः जिम्मेदारी संभाली ओर दुकान का काम पटरी पर लौटा। तब दुकान के खर्च से भाई और स्वयं का इलाज कराया। यहां तक कि एक बहन गौरी गोयल की शादी भी अपने हैसियत के हिसाब के संपन्न कराई।

वह ऋषिकेश तथा आसपास क्षेत्रों के अन्य दिव्यांग लोगों के संपर्क में आई। तब उन्हें लगा कि दिव्यांगता अभिशाप नहीं, इसे अपनी ताकत के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। जिसके बाद वह दुकान तक ही सीमित नहीं रही। दुकान से बाहर जाकर भी अपने को मजबूत किया। लोगों की कई बात को नजरअंदाज करते हुए आगे बढ़ी । उन्होंने इस बीच अपने हौसले को ना गिरा कर कार चलाना सीखा। स्विमिंग सीखी, गिटार बजाना सीखा। हौसला तब मिला जब जिंदगी में पहली दफा करीब 400 लोगों के बीच गिटार बजाया। जिसकी काफी सराहना हुई।
नीरजा आगे बताती है कि लोगों ने उन्हें बैडमिंटन खेलने का मौका दिया । वहीं, उसनें बैडमिंटन खेलना शुरू किया। अगस्त 2017 से प्रेक्टिस शुरू की। हालांकि नगर भर में कोई अच्छा बैडमिंटन कोर्ट नहीं था। कोच जितेंद्र बिष्ट ने उन्हें शिक्षा दी, जिसके बाद उन्होंने गली और मोहल्ले में बच्चों के साथ प्रेक्टिस की।

दिव्यांगता को चुनौती देते हुए उन्होंने वर्ष 2017 में जयपुर राजस्थान में आयोजित राष्ट्रीय पैरा सिटिंग बाॅलीबाल में कांस्य पदक जीता, वर्ष 2018 में बनारस में आयोजित राष्ट्रीय पैरा बैडमिंटन में कांस्य पदक जीता, वर्ष 2018 में पंजाब में आयोजित एलपीयू यूनिवर्सिटी में शूटिंग प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीता, वर्ष 2018 में देहरादून में आयोजित खेलो इंडिया में पैरा बैडमिंटन में स्वर्ण पदक और व्हील चेयर रेस में रजत पदक ,वर्ष 2019 में रूद्रपुर उत्तराखंड में खेल महाकुंभ में पैरा बैडमिंटन में रजत पदक जीता, भाला फेंक में रजत,वर्ष 2019 में पंजाब में आयोजित एलपीयू यूनिवर्सिटी में भाला फेंक में रजत पदक,वर्ष 2019 में देहरादून उत्तराखंड में आयोजित पैरा बैडमिंटन प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक, भाला फेंक में कांस्य पदक,वर्ष 2019 में थाईलैंड में अंतरराष्ट्रीय पैरा बैडमिंटन में प्रतिभाग किया, भारत का प्रतिनिधित्व किया ,वर्ष 2020 में देहरादून उत्तराखंड में आयोजित खेल महाकुंभ में पैरा बैडमिंटन में स्वर्ण पदक, भाला फेंक में कांस्य पदक प्राप्त कर अपने उपलब्धियों में शामिल किया ।

इसी के साथ नीरजा गोयल को उत्तराखंड सरकार ने वर्ष 2020 में निशुल्क बच्चों के प्रति काम करने को लेकर मुझे बेटी बचाओं-बेटी पढ़ाओं अभियान का ब्रांड एंबेसडर नियुक्त किया, विश्व दिव्यांग दिवस 03 दिसंबर को जिलाधिकारी देहरादून ने पुरस्कार देकर सम्मानित किया।

वर्ष 2019 से निर्धन और जरूरतमंद लोगों की मदद कर रही है। वर्ष 2020 में नीरजा गोयल देवभूमि चेरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना की। वर्तमान में ट्रस्ट निर्धन बच्चों को पाठ्य सामग्री, कपड़े वितरण, प्रत्येक शुक्रवार को त्रिवेणी घाट पर निर्धन, भिक्षुक, सांधु व संतों को एक वक्त का भोजन उपलब्ध करवा रही है। इसके अलावा निर्धन कन्याओं को उनके शिक्षा, विवाह में भी ट्रस्ट मदद करता है। ट्रस्ट ने लाॅकडाउन में करीब 800 परिवारों को निशुल्क खाद्य सामग्री की किट वितरित की। शीतकाल में पुराने वस्त्रों को एकत्र कर निर्धन लोगों के लिए स्टाॅल लगा रही है। उन्हें इस काम में उनकी बहन नुपूर गोयल का भरपूर साथ मिलता है, जो कि हर समय उन्हें व्हील चेयर के जरिए लोगों के पास लेकर जाती है।

-कोविड-19 कर्फ्यू काल में भी सेवा ही धर्म को मिशन मानकर वह लगातार कार्यरत हैं।जो कि 1 मई से इस अभियान को चला रही है। उनकी ट्रस्ट की ओर से कोविड-19 कर्फ्यू दौरान किये गए कार्य अब तक करीब 200 परिवारों को सुखा राशन उपलब्ध कराये जाने के साथ ही घर से कोरोना से पीड़ित करीब 120 परिवारों में टिफिन की व्यवस्था कर अन्य संस्थाओं को आइना दिखा चुकी हैं । मलिन बस्तियों, ऋषिकेश तहसील, ऋषिकेश कोतवाली, ऋषिकेश नगर निगम में करीब 500 सैनिटाइजर और 1000 मास्क वितरित किए गये।बाजार में ऑक्सीमीटर की कालाबाजारी को देखते हुए ऑक्सीमीटर पीड़ित परिवार को निशुल्क उपलब्ध कराये गए। नगर भर में निराश्रित जानवर के लिए जगह जगह चारा उपलब्ध करवा रही है। करीब 300 परिवारों को एंटीबायोटिक दवा जिसमें पेरासिटामोल विटामिन सी और डी की गोलियां वितरित की।गंभीर बीमारी से जूझ रहे एक अनाथ बच्चे के ऑपरेशन के लिए 10 हज़ार रुपये की आर्थिक मदद कर चुकी है।

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