प्रदेश के विकास के लिए क्या धामी सरकार बनाएगी मंत्रिमंडल में क्षेत्रीय संतुलन? पहाड़ और मैदान के बीच पटती खाई को क्या दूर कर पाएगा सरकार का नया मत्रिमंडल?
ऋषिकेश देहरादून 17 मार्च। उत्तराखंड में प्रेमचंद अग्रवाल के कैबिनेट मंत्री पद से इस्तीफे के बाद उत्तराखंड सरकार में मंत्रिमंडल में फेरबदल को लेकर कयास तेज हो चुके हैं।
उत्तराखंड में नगर निकाय 2025 के चुनाव के बाद लगातार पहाड़ और मैदान के बीच एक खाई सी पटती नजर आ रही है। जिसको दूर करने के लिए भाजपा सरकार द्वारा मैदानी क्षेत्र से भी किसी चेहरे को अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया जाता है या नहीं यह देखने वाली बात है। क्योंकि पूरे भारतवर्ष में देश प्रदेश में विकास के लिए सभी जगह सरकारो द्वारा जहां जातिगत समीकरण का संतुलन बनाया जाता है तो वही क्षेत्रीय संतुलन को भी बनाए जाना भी जरूरी हो जाता है।
उत्तराखंड के अस्तित्व में आने के क़रीब 25 वर्ष में यह पहला मौका होगा जब मैदानी जिले का कोई चेहरा प्रदेश सरकार के मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व नहीं कर रहा। अभी फिलहाल केवल पर्वतीय क्षेत्रो से ही आए चेहरे ही धामी केबिनेट का हिस्सा है। हालांकि जल्द ही धामी मंत्रिमंडल का विस्तार देखने को मिल सकता है, लेकिन उसमें भी गारंटी नहीं कि मैदानी जिले से किसी भाजपा विधायक को केबिनेट में जगह दी ही जाए।
मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल के इस्तीफे के बाद से जिस तरह पहाड़ी समाज से जुड़े लोगों में खुशी देखी जा रही है। तो वहीं रविवार की देर रात विधायक प्रेमचंद अग्रवाल के आवास पर इकट्ठा हुए मैदानी महासभा के लोगों द्वारा इस्तीफा देने जाने को लेकर नाराजगी जताते हुए बाजार को बंद करने का फैसला किया था परंतु बाद में विधायक प्रेमचंद अग्रवाल द्वारा ऐसा कोई भी कार्य ना करने के लिए सभी लोगों से अपील भी की थी।
फिर भी इसके बावजूद सोमवार को डोईवाला क्षेत्र में प्रेमचंद के इस्तीफे के विरोध में बाजार बंद की भी खबरें सामने आई । जिसको प्रेमचंद अग्रवाल ने मौके पर जाकर व्यापारियों को समझा बुझाकर उनको अपने प्रतिष्ठान खोलने की अपील की।
बता दें कि छोटे से राज्य उत्तराखंड में इन दिनों पहाड़ और मैदान को लेकर एक जंग देखी जा रही है जो जगह जगह विवाद का कारण भी बनती देखी गई जो कई बार कोतवाली की चौखट तक भी पहुंचा। अब एक बार फिर से विधायक प्रेमचंद अग्रवाल के इस्तीफे से पहाड़ और मैदान के बीच एक खाई सी पटती नजर आ रही है।
लेकिन कुल मिलाकर इस वक्त उत्तराखंड की फिजा में विकास की बजाए क्षेत्रवाद की नीति को ज्यादा तूल दिया जा रहा है। अब देखना होगा कि आने वाले दिनों में जब धामी मंत्रिमंडल का विस्तार होगा तो उसमे मैदानी जिले से आए चेहरे को जगह मिलेगी या पहाड़ का ही प्रतिनिधित्व देखने को मिलेगा। अब देखने वाली बात यह रहेगी कि धामी सरकार मंत्रिमंडल के विस्तार में उत्तराखंड में विकाश को तरजीह देते हुए क्षेत्रीय संतुलन को भी बरकरार रखेगी या नहीं?
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