Advertisement

गणेश उत्सव के बाद श्रद्धा से नदियों में प्रवाहित की जाने वाली मूर्तियां कहीं हमारी नदियों का ही श्राद्ध न कर दें- बाबा भूपेन्द्र गिरि


ऋषिकेश, 12 सितम्बर । अखिल भारतीय षडदर्शन साधु समाज अखिल भारतीय सनातन धर्म रक्षा समिति के उत्तराखंड प्रदेश अध्यक्ष बाबा भूपेंद्र गिरी ने देशवासियों को श्री गणेश चतुर्थी पर देशवासियों से अपील करते हुए कहा कि इस गणेश चतुर्थी पर प्रकृति पुत्र भगवान श्री गणेश जी की ईकोफ्रेंडली प्रतिमाओं को प्रोत्साहन देे ,ताकि हमारा पर्यावरण और जल स्वच्छता के साथ प्रदूषण मुक्त रह सके।

यह विचार बाबा भूपेन्द्र गिरि ने त्रिवेणी घाट पर स्थित गौरी शंकर मंदिर में महंत गोपाल गिरी की अध्यक्षता में आयोजित पूजा अर्चना करने के उपरांत व्यक्त करते हुए कहा कि प्रकृति, पर्यावरण एवं सम्पूर्ण धरती के स्वास्थ्य की रक्षा के लिये ईकोफ्रैंडली प्रतिमायें जैसे गौ के गोबर, मिटटी और आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों से बनी भगवान श्री गणेश जी की प्रतिमाओं की स्थापना करे ताकि हमारा पर्यावरण सुरक्षित रह सके।

आजकल बाजार में प्लास्टिक, प्लास्टर ऑफ पेरिस, थर्मोकोल या अन्य उत्पादों से बनी प्रतिमायें मिल रही है जिनका विर्सजन जल और थल दोनों के लिये हानिकारक है। हमें ध्यान रखना होगा कि जिन परम्पराओं से पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है, हमारी प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा है ।

उन परम्पराओं पर अब ध्यान देने की जरूरत है तथा ऐसी परम्पराओं को हमें बदलने की जरूरत है।उन्होंने ने कहा कि प्लास्टर ऑफ पेरिस की प्रतिमाओं का जलराशियों में विसर्जन कदापि श्रेयष्कर नहीं है, यह हमारी श्रद्धा का विषय हो सकता है परन्तु इससे नदियों का तो श्राद्ध ही हो रहा है।

हमें ध्यान रखना होगा कि नदियों के कम होते प्रवाह एवं अन्य समस्याओं के कारण कहीं हमारी श्रद्धा हमारी नदियों का ही श्राद्ध न कर दे।परम्पराओं को बचाने और पर्यावरण को स्वच्छ रखने के लिये यह भी पहल की जा सकती है। कि भगवान गणेश जी की प्रतिमा बनाते वक्त उनके पेट में जो फल आपकोेे पसंद हो या तुलसी का बीज रखा जाये। 14 दिन बाद जब प्रतिमा का विर्सजन करे तो उसे अपने घर पर ही किसी गमले में, गार्डन में या किसी उद्यान में विसर्जित करे ताकि गणेश जी के पेट में जो बीज डाला है उसका रोपण और संरक्षण ठीक से किया जा सके। वह पौधा भगवान श्री गणेश के आशीर्वाद और कृपा दृष्टि का प्रतीक होगा।

उन्होंने कहा कि श्री गणेश जी की प्रतिमा का विसर्जन तो करें पर नये सर्जन के साथ करें। वेदमंत्रों के साथ या ऊँ गं गणेशाय नमः आदि मंत्रों के साथ गणेश जी की मूर्ति को जमीन में गढ्ढा खोदकर स्थापित करें, इससे पर्यावरण भी बचेगा और परम्परा भी। तथा पूजित मूर्तियों का सम्मान भी बरकरार रहेगा भगवान की प्रतिमाओं का अगर नदियों एवं तालाबों में विसर्जन किया जा रहा है।

इससे जल और पर्यावरण प्रदूषण तो बढ़ता ही है साथ में पूजित प्रतिमाओं की दुर्गति भी देखने को मिलती है, मूर्तियां लम्बे समय तक अस्त व्यस्त रूप में इधर-उधर पडी रहती है, इससे श्री गणेश जी का भी अनादर होता है तथा यह दृश्य देखने वालों में भी अश्रद्धा उत्पन्न होती है इसलिये शास्त्रों के अनुरूप एवं पर्यावरण की रक्षा करते हुये गणेश जी का विसर्जन करना होगा। जिससे हमारा पर्यावरण भी बचेगा, परम्परा भी तथा प्रकृति और हमारी पीढ़ियां भी बचेग।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *