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गोबर से बने दीयों से मनायें दीपावली- स्वामी चिदानन्द सरस्वती


ऋषिकेश, 03 नवम्बर.  कृष्ण पक्ष चतुर्दशी (नरक चतुर्दशी) के अवसर पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने देशवासियों को शुभकामनायें देते हुये कहा कि दानव राजा, नरकासुर, जो प्रागज्योतिषपुर के शासक थे, नरक चतुर्दशी से एक दिन पहले, भगवान कृष्ण ने नरकासुर को हरा कर कैद की हुयी बेटियों को मुक्त किया था। छोटी दिवाली के दिन भगवान विजयी होकर घर लौटे थे इसलिये इस दिन को असुरों पर विजय के रूप में मनाया जाता है। आज हमें पर्यावरण प्रदूषण रूपी असुर का संहार करने की जरूरत है।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि हमारी हवा, जल, मिट्टी और पर्यावरण स्वस्थ और सुरक्षित होगा तो हमारी जड़ी-बूटी और पौड़ पौधें भी स्वस्थ होगे इसके लिये हमें सतत प्रयत्नशील रहना होगा। हमारे राष्ट्र के यशस्वी व तेजस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आयुर्वेद को वरियता देकर जड़ी-बूटी के महत्व को उद्घाटित किया है। दिवाली पर्व पर अपने परिवार और ईष्ट-मित्रों को कुछ ऐसा उपहार दे जिससे उन्हें वास्तविक समृद्धि प्राप्त हो तथा स्वस्थ जीवन और स्वच्छ वातावरण के निर्माण में सहायक हो और इसके लिये पौधों से बेहतर कोई उपहार नहीं हो सकता।

स्वामी ने कहा कि आईये इस दीपावली पर मिट्टी के दीये खरीदे ताकि सब के घर में दीपावली मनायी जा सके। यह दीवाली दिल वालों की दीवाली हो ताकि सब के घरों में दीये जले, सब के घरों में खुशियाँ आये। दीपावली में दीये का अत्यधिक महत्व है हमारे द्वारा खरीदे गये दियों से कई घरों में चूल्हे जलते हैं। त्योहारों के अवसर पर कई लोग सड़कों के किनारों पर दीये लेकर बैठते हैं और ग्राहकों के आने का इंतजार करते हैं परन्तु उपभोक्तावादी संस्कृति के कारण अब उनकी ओर शायद किसी का ध्यान जाता है।

स्वामी ने कहा कि दीये से जुड़ने का अर्थ है अपनी माटी से जुड़ना। दीपक, परम्परा और सभ्यता का प्रतीक है हड़प्पा संस्कृति से लेकर आधुनिक संस्कृति, संवेदनायें और आशाओं को समेटे दीपक स्वयं जलकर दूसरों को प्रकाश देता हैं। दीया जीवटता की मिसाल कायम करता है और सीखाता है कि जीवन में आने वाली समस्याओं का सामना जीवटता के साथ कर आगे बढ़ते रहने का संदेश देता है। हम दीयों को जलाकर बच्चों को यह संदेश सहजता से दें सकते हैं इससे उन्हें दीपावली पर्व और दीपक का मर्म भी समझ में आयेगा। आईये सब के साथ मिलकर दिल वालों की दीपावली मनायें.


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