स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने विजय दिवस के अवसर पर सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित की


ऋषिकेश, 16 दिसम्बर‌ । परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने स्वर्णिम विजय दिवस के अवसर पर उन सभी सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित की, जिन्होंने राष्ट्र की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुतियां दी। आज की परमार्थ गंगा आरती उन सभी वीर जवानों को समर्पित की।

शुक्रवार को उन्होंने कहा कि 16 दिसंबर का दिन भारत पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध का निर्णायक दिन था. इस दिन को हम सभी देशवासी विजय दिवस के रूप में मनाते हैं, आज का दिन वास्तव में सर्वोच्च बलिदान का दिन है।
स्वामी जी ने कहा कि मुझे गर्व होता है कि हमारे यशस्वी, ऊर्जावान, कर्मठ, तेजस्वी और हर पल सजग प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी इन्हीं बदिलानों को याद करते हुये प्रतिवर्ष दीपावली हमारे सैनिकों के साथ मनाते है, क्योंकि हम सभी एक परिवार के सदस्य हैं, विचारों की यही ऊँचाई भारतीय संस्कृति की विशेषता है।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि भारत की सेना ने नैतिकता के पथ पर अग्रसर होते हुए वीरता के साथ विश्वशांति और सौहार्द्र की स्थापना के लिये सदैव कार्य किया है। भारतीय सेना मानवीयता की संस्कृति को आत्मसात कर आगे बढ़ती है। भारतीय सैनिकों ने संवेदना और मानवता के उच्चतम आदर्शों के साथ सेवा, सहयोग, निर्माण और धैर्य आदि गुणों को आत्मसात कर वीरता का परिचय दिया है। भारतीय सेना का दुश्मन की सेना के युद्ध में पकड़े गए अथवा घायल या मृत सैनिकों के प्रति बहुत ही संवेदनात्मक व्यवहार रहा है, जो अपने आप में एक गर्व की बात है।

स्वामी ने कहा कि हमारे सैनिक देश की सीमाओं पर खड़े होकर अद्म्य साहस और बहादुरी के साथ अपने वतन की रक्षा के लिये हमेशा तैनात रहते है और दुश्मनों का सामना करते है। हमारी सीमाओं पर सैनिक हंै तो हमारी सीमायें सुरक्षित है; सैनिक है तो हम हैं, हमारा अस्तित्व है और आज हम सब सुरक्षित हैं।
सैनिक अपनी जान को हथेली पर रखकर अपने देश की रक्षा करते हंै तथा भारत माता की रक्षा के लिये हसंते-हसंते अपनी जान कुर्बान कर देंते हैं।

स्वामी कहा कि धन्य है वे माता-पिता जिन्होंने भारत को ऐसे बहादुर सपूत दिये जिनके कारण भारत आज गर्व से खड़ा है। आज की परमार्थ निकेतन गंगा आरती सीमाओं पर शहीद जवानों को समर्पित की तथा राष्ट्र की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति देने वाले शहीदों को भावभीनी श्रद्धाजंलि अर्पित की।


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