ऋषिकेश, 28 नवंबर। ऋषिकेश तीर्थ नगरी में आखिरकार पार्टी हाई कमान के दखल के बाद पिछले कुछ वर्षों से लगातार स्थानीय विधायक और नगर निगम की पूर्व महापौर के बीच चली आ रही खींचातानी को खत्म कर एक दूसरे को एक साथ आना ही पड़ा।
जिसको लेकर दो दिन से नगर के राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गया है। जिसमें दोनों तरफ गुट में बटे हुए कार्यकर्ताओं के लिए असमंजस की स्थिति पैदा हो गई है।
बताते चले इससे पूर्व में भी वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भी स्थानीय विधायक एवं भाजपा के एक नेता द्वारा बागी तेवर दिखाकर चुनाव में आमने-सामने चुनाव लड़े थे। जिसमें भाजपा कार्यकर्ताओं के सामने असमंजस की स्थिति आ गई थी। परंतु समय बीतने के बाद भाजपा संगठन के प्रयास के बाद भाजपा के बागी नेता द्वारा दोबारा भाजपा ज्वाइन करने पर भाजपा के कार्यकर्ताओं के सामने फिर से असमंजस की स्थिति पैदा हो गई थी।
इसी कड़ी में पिछले 5 वर्षों से ऋषिकेश भाजपा में स्थानीय विधायक और पूर्व महापौर के बीच लगातार खींचातानी सभी के सामने रही है।
जिसको लेकर सामाजिक व राजनीतिक मंचों पर आयोजकों द्वारा एक दूसरे को अपने कार्यक्रमों में बुला लेना भी दोनों के लिए असमंजस की स्थिति पैदा कर देता था, यदि दोनों कार्यक्रमों में आ भी जाते थे। तो दोनों ही एक दूसरे का नाम लेना भी गंवारा नहीं समझते थे। दोनों ही आयोजकों से अपेक्षा रखते थे कि वह दोनों में से एक को पहले बुलाए और वह अपनी बात कह कर मंच तक छोड़ जाते थे।
जिसको लेकर आखिरकार फिर से भाजपा हाई कमान के दखल से ऋषिकेश नगर निगम के होने वाले संभावित चुनाव को देखते हुए दोनों एक साथ मंच साझा ही नहीं कर रहे हैं, बल्कि एक साथ भोजन भी कर रहे हैं।
जिसे देखकर कुछ रजनीति पंडितों को यह कहते सुना जा रहा है कि राजनीति ही एक ऐसी चीज है, की कब कौन किसका दुश्मन है और कौन मित्र,जिसे लेकर पार्टी के आम कार्यकर्ता व समर्थक असमंजस की स्थिति में आ गए हैं, जिनका मानना है कि यह सब भारतीय जनता पार्टी के हाई कमान के प्रयास से ही संभव हो पाया है, जिसका कारण आगामी नगर निगम के चुनाव का होना बताया जा रहा है।
दोनों नेताओं के बीच हुई आपसी सुलह को लेकर गुट में बटे कार्यकर्ताओं में जहां असमंजस की स्थिति फिर से पैदा हुई वहीं आगामी नगर निगम चुनाव को लेकर भी नए चुनावी गणित गढ़ने जाने लगे हैं।
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