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चार धाम देवस्थानम बोर्ड राज्य के मंदिरों के साथ तीर्थ पुरोहितों के हित में है -मनोहर कांत ध्यानी -बोर्ड अधिनियम का अध्ययन कर रिपोर्ट तैयार, शीघ्र सरकार को सौंपी जाएगी


ऋषिकेश, 20 अक्टूबर । चार धाम देवस्थानम् बोर्ड के अध्यक्ष मनोहर कांत ध्यानी ने कहा कि राज्य के मंदिरों के रखरखाव को लेकर राज्य सरकार द्वारा बनाए गए, देवस्थानम् बोर्ड अधिनियम का उनके द्वारा पूरी तरह अध्ययन कर विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर ली गई है ।

जिसे वह शीघ्र ही राज्य सरकार को सौंप देंगे । यह जानकारी देवस्थानम् बोर्ड के अध्यक्ष मनोहर कांत ध्यानी ने देते हुए बताया कि राज्य सरकार द्वारा गठित बोर्ड के विरोध में चार धाम हक हकूक धारी महापंचायत द्वारा अपने हक हकूकों को लेकर चिंता व्यक्त की गई थी, परंतु इस एक्ट में राज्य सरकार द्वारा उत्तराखंड के 58 मंदिरों को बोर्ड में शामिल किए जाने के बाद महापंचायत के किसी भी प्रकार के हकों का हनन किए जाने की मंसा जाहिर नहीं हुई है।

जिसका उनके द्वारा पूरी तरह से अध्ययन कर निष्कर्ष निकाला गया है, और जो खामियां है। उन्हें शीघ्र सरकार व महापंचायत के प्रतिनिधियों के साथ बैठकर उनका समाधान कर लिया जाएगा। मनोहर कांत ध्यानी ने कहा कि वैसे तो वर्ष 1899 इस प्रकार का एक्ट बनाया गया था, जिसके अंतर्गत रावल को ही राजा के रूप में माना गया था, परंतु इस बीच एक्ट मैं आई विसंगतियों के कारण कुछ संशोधन भी किए गए थे।

उन्होंने बताया कि एक्ट में आई खामियों का उल्लेख इलाहाबाद के प्रभुदत्त ब्रह्मचारी ने अपनी किताब बद्री नामा दर्शन नामक पुस्तक में किया गया था, जिस में उठाए गए सवालों को लेकर जनता में विद्रोह भी हुआ, जिसे देखते हुए कांग्रेस की अंतरिम सरकार ने1939 फिर इस एक्ट को बनाया, जिसमें उत्तराखंड के 52 के स्थान पर 58 मंदिरों को शामिल किया गया था। इस व्यवस्था के अंतर्गत जो मंदिर से सहायता प्राप्त करते थे, उनका कार्यकाल 8 वर्ष का रहता था ।

जिसके बाद वर्ष 2021 में वर्तमान भा ज पा सरकार ने मंदिरों के रखरखाव व रक्षा के लिए देवस्थानम् बोर्ड का गठन पुराने बने एक्टों का अध्ययन किए जाने के बाद किया है ।जिसमें राज्य के प्रमुख बदरीनाथ, केदारनाथ, यमुनोत्री, गंगोत्री के मंदिरों के साथ उन सभी मंदिरों को भी शामिल किया है। जोकि पहले से एक्ट में बने हैं, ध्यानी का कहना था कि उनकी परंपरा भी वही, रहेगी जो पहले से पुरानी टिहरी स्टेट के समय में रही है। जिस पर राजा का नियंत्रण रहता था, जिसे लेखवार के रूप में भी जाना जाता था।

जिसमें स्थानीय जनता के साथ तीर्थ पुरोहितों की समिति का अध्यक्ष भी राजा ही होता था । इस समिति में एक तहसीलदार की नियुक्ति की गई थी, इसी के साथ समिति में उपाध्यक्ष को भी राजा ही नियुक्त किया करता था, तभी से यह परंपरा चली आ रही है। इस व्यवस्था के चलते जब राजशाही समाप्त हुई तो इसे चलाने के लिए व्यवस्था में भी परिवर्तन किया गया है जिसके अंतर्गत नए लोगों को अधिकार दिए गए हैं।

और अधिकारों को यथावत रखने के लिए देवस्थानम बोर्ड में भी उन्हें शामिल किया गया है ,परंतु कुछ लोगों को हुए भ्रम के चलते इसका विरोध किया जा रहा है। जब उनसे इसे लेकर बातचीत की जाएगी तो वह भ्रम भी दूर कर लिया जाएगा, क्योंकि देवस्थानम् बोर्ड में जो अधिकार पहले से चले आ रहे हैं। वह बरकरार रहेंगे ।

कुल मिलाकर ध्यानी का कहना था कि देवस्थान बोर्ड उत्तराखंड के सभी मंदिरों की रक्षा व रखरखाव के साथ उनसे लाभ लेने वाले सभी लोगों के हित में है ,जो खामियां थी उस पर विस्तृत रूप से रिपोर्ट तैयार कर ली गई है ।जिसे शीघ्र राज्य सरकार को सौंप दिया जाएगा।


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