ऋषिकेश 30 अप्रैल। अक्षय तृतीया के अवसर पर भगवान आदिनाथ के प्रथम आहार के रूप में गन्ने का रस देने के उपलक्ष में जैन धर्मावलंबीयो ने दान पर्व के रूप में गन्ने के रस की छबील का आयोजन किया गया।
जैन धर्म की मान्यता के अनुसार भगवान आदिनाथ ने इस दुनिया को असि-मसि -कृषि के बारे बताया था। इसे आसान भाषा में समझें तो असि अर्थात तलवार चलाना, मषि अर्थात स्याही से लिखना, कृषि अर्थात खेती करना होता है। भगवान आदिनाथ ने ही लोगों को इन विद्याओं के बारे में समझाया और जीवन यापन के लिए इन्हें सीखने का उपदेश दिया। कहते हैं कि भगवान आदिनाथ ने ही सबसे पहले अपनी बेटियों को पढ़ाकर जीवन में शिक्षा का महत्व बताया था।
जैन समाज के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव ने दीक्षा के समय 6 मास का उपवास किया था। उपवासोपरांत उन्होंने आहार के लिए विहार किया। लेकिन उन्हें 7 माह 9 दिन तक आहार प्राप्त नहीं हुआ। क्योंकि दान विधि किसी को पता नहीं थी। एक दिन भगवान ऋषभदेव को देखकर हस्तिनापुर के राजा श्रेयांश को अपने पूर्व भव का स्मरण होने से दान विधि मालूम हुई। उन्होंने भगवान को प्रथम बार विधिवत पड़गाहन कर इक्षु अर्थात गन्ने का रस का आहार दिया।
उस दिन वैशाख शुक्ल तृतीया थी। इसी दिन से जैन धर्मावलंबी अक्षय तृतीया को दान पर्व के रूप में मनाते आ रहे हैं।
अक्षय तृतीया पर जैन मंदिरों में शांतिधारा और विशेष विद्वान विधिवत होते हैं। उसके बाद सुबह से ही गन्ने का रस आमजन को पिलाया जाता है। यह क्रम शाम तक चलता है।
इस मौके पर अरविन्द जैन, प्रमोद कुमार जैन, सचिन जैन, नवीन जैन, राकेश जैन प्रदीप जैन, बजरंग जैन, अतुल जैन, एस एस अतवड़िया, दीपा जैन ,पूनम जैन ,प्रीति जैन ,मृदुला जैन, संध्या जैन, सुनील जैन, समेत वरिष्ठ नागरिक कल्याण सगठन के पदाधिकारी भी मौजूद रहे।
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