ऋषिकेश 29 सितंबर। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ऋषिकेश में करोड़ों का घोटाला सामने आया है। सीबीआई ने संस्थान के पूर्व निदेशक डॉ. रविकांत, तत्कालीन एडिशनल प्रोफेसर (रेडिएशन ऑन्कोलॉजी) डॉ. राजेश पसरीचा और तत्कालीन स्टोर कीपर रूप सिंह के खिलाफ भ्रष्टाचार का मुकदमा दर्ज किया है।
सूत्रों के मुताबिक, यह घोटाला 2.73 करोड़ रुपये का है। आरोप है कि इन अधिकारियों ने मिलकर कोरोनरी केयर यूनिट की स्थापना, उपकरणों की खरीद और टेंडर प्रक्रिया में गंभीर अनियमितताएं कीं।
सीबीआई ने 26 मार्च 2025 को कार्डियोलॉजी विभाग में छापेमारी की थी। इस दौरान 16 बिस्तरों वाले कोरोनरी केयर यूनिट की स्थापना से जुड़ी पूरी निविदा फाइल मांगी गई, लेकिन स्टोर अधिकारी दीपक जायसवाल ने बताया कि फाइल लंबे समय से गायब है। रिकॉर्ड खंगालने पर भी फाइल का कोई पता नहीं चल सका।
जांच में सामने आया कि मशीन की खरीद के लिए 05 सदस्यीय कमेटी बनाई गई थी, जिसमें डॉ. बलराम जी ओमर, डॉ. बृजेंद्र सिंह, डॉ. अनुभा अग्रवाल, दीपक जोशी और शशिकांत शामिल थे।
आरोप है कि इस कमेटी ने नियमों को ताक पर रखकर अयोग्य कंपनी को टेंडर दिया और 02 करोड़ रुपये की मशीन खरीदी, जो सिर्फ 124 घंटे ही चली। इसी तरह, केमिस्ट की दुकान का टेंडर भी नियमों के विपरीत मैसर्स त्रिवेणी सेवा फार्मेसी को दिया गया।
यह पहला मामला नहीं है। सीबीआई ने अगस्त 2023 में भी एम्स में उपकरणों की खरीद में अनियमितताओं का मुकदमा दर्ज किया था।
जांच में सामने आया कि जनवरी से फरवरी 2019 के बीच उन्नत वेसल सीलिंग उपकरणों की खरीद प्रक्रिया में गड़बड़ी की गई। उस समय खरीद अधिकारी और समन्वयक के रूप में डॉ. बलराम जी ओमर को जिम्मेदारी दी गई थी।
दरअसल, एम्स ने इससे पहले यही उपकरण 19.90 लाख रुपये प्रति यूनिट की दर से खरीदे थे, लेकिन बाद में भारी भरकम रकम में इन्हें दोबारा खरीदा गया।
प्रकरण की गंभीरता को देखते हुए एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) और सीबीआई ने संयुक्त रूप से जांच की। इसमें खुलासा हुआ कि टेंडर प्रक्रिया और खरीद में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और वित्तीय अनियमितताएं की गईं।
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