इस तकनीक से एम्स ऋषिकेश में पहला ऑपरेशन
ऋषिकेश 14 जून । हड्डी के कैंसर की समस्या से जूझ रहे एक 26 वर्षीय युवक की सफल सर्जरी कर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, एम्स ऋषिकेश के चिकित्सकों ने उसे विकलांग होने से बचाने में सफलता प्राप्त की है। मरीज के पैर की एड़ी में जिस स्थान पर कैंसर था, वहां अब नया इम्पलांट लगाया गया है। यह उपचार आयुष्मान भारत योजना के तहत किया गया है।
एम्स निदेशक पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत जी ने सफलतापूर्वक सर्जरी के लिए चिकित्सकों की टीम की प्रशंसा की है। निदेशक एम्स पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत जी ने कहा कि एम्स में अत्याधुनिक तकनीक युक्त विश्वस्तरीय उपचार सुविधाएं मौजूद हैं। उन्होंने बताया कि हड्डी और कैंसर से जुड़े विभिन्न रोगों के समुचित इलाज व प्रबंधन के लिए विशेषज्ञ चिकित्सकों की टीम मरीजों के उपचार के लिए 24 घंटे तत्परता से कार्य कर रही है।
सहारनपुर ( उत्तर प्रदेश ) निवासी 26 वर्षीय युवक पिछले 2 वर्षों से पैर की एड़ी में कैंसर की समस्या से जूझ रहा था। एड़ी की हड्डी में कैंसर होने के कारण उसके पैर में सूजन आ चुकी थी और उसे चलने-फिरने में बहुत तकलीफ होती थी। इलाज के लिए वह पहले सहारनपुर और मेरठ के कई बड़े अस्पतालों में गया, मगर हड्डी में कैंसर की वजह से उसे चिकित्सकों ने उपचार में असमर्थता जताई। इसके बाद मरीज इलाज के लिए एम्स ऋषिकेश पहुंचा। मरीज के सघन परीक्षण के बाद संस्थान के सर्जिकल ओंकोलॉजी विभाग के चिकित्सकों ने पाया कि मरीज के दाएं पैर की एड़ी में कैंसर है और वह खतरनाक गति से आगे बढ़ रहा है।
इस बाबत सर्जिकल ओंकोलॉजी विभाग के सर्जन डाॅ. राजकुमार जी ने बताया कि हड्डी का कैंसर बहुत खतरनाक होता है और जोखिम के कारण ऐसे मामलों में सर्जरी नहीं की जाती है। लेकिन इस मरीज के बेहतर उपचार के लिए विभिन्न विभागों के विशेषज्ञ चिकित्सकों की संयुक्त टीम बनाई गई।
सीटी स्कैन जांच से पता चला कि उसके पैर की हड्डी में कैंसर बहुत आगे तक फैल चुका है, जिसका कीमोथैरेपी अथवा रेडियोथैरेपी विधि से उसका उपचार संभव नहीं है। ऐसे में टीम ने ’लिम्ब साल्वेज सर्जरी’ करने का निर्णय लिया। उन्होंने बताया कि सर्जरी में 4 घंटे का समय लगा जिसमें लगभग 12 डाॅक्टरों की टीम इस सर्जरी में शामिल थी। कस्टम मेड इस इम्पलांट की कीमत ढाई लाख रुपए है।
सर्जरी के बाद मरीज को अब सर्जिकल ओंकोलॉजी वार्ड में भर्ती किया गया है। टीम के सदस्य नियमिततौर से उसकी देखभाल कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि कुछ दिनों तक उसके स्वास्थ्य की निगरानी के बाद उसे अगले सप्ताह डिस्चार्ज कर दिया जाएगा। सर्जरी करने वाले चिकित्सकों की टीम में सर्जिकल ओंकोलॉजी विभाग के डाॅ. राजकुमार जी, आर्थोपेडिक विभाग के डाॅ. मोहित धींगरा, प्लास्टिक सर्जरी विभाग की डाॅ. मधुबरी वाथुल्या जी और एनेस्थीसिया विभाग के डाॅ. अंकित आदि शामिल थे।
आर्थोपेडिक विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. पंकज कंडवाल जी और विभाग की प्रोफेसर शोभा एस. अरोड़ा ने सर्जरी करने वाले टीम सदस्यों की सराहना की और कहा कि यह टीम भावना से किए गए कार्य का परिणाम है।
रोगी की जान बचाने के लिए कई बार शरीर के गंभीर रोगग्रस्त या दुर्घटनाग्रस्त अंगों खासकर हाथ-पैरों को ऑपरेशन कर काटना पड़ता है। अंग- भंग हो जाने से पीड़ित व्यक्ति की निजी, आर्थिक और सामाजिक स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। लेकिन ऐसी स्थिति में अब अंग रक्षण शल्य-क्रिया (लिम्ब साल्वेज सर्जरी) का उपयोग किया जा रहा है। मुख्यरूप से कैंसर हो जाने पर लिम्ब साल्वेज सर्जरी अत्यधिक उपयोगी है। इसके द्वारा हड्डी और सॉफ्ट टिश्यूज में फैली कैंसरग्रस्त कोशिकाओं को हटाने के साथ ही अंग को विच्छेदित होने और इस प्रकार पीड़ित व्यक्ति को विकलांगता से बचाया जा सकता है।
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