ऋषिकेश,24 सितंबर ।टिहरी बांध परियोजना के इतिहास में आज उल्लेखनीय दिन साबित हुआ, जब टिहरी जलाशय में जल का स्तर पहली बार 830 मीटर के पूर्ण जलाशय को छु गया है ।यद्यपि यह परियोजना पिछले 15 वर्षों से लगातार 1000 मेगावाट की पीकिंग पावर के साथ-साथ पेयजल एवं सिंचाई के लिए जल, बाढ़ नियंत्रण, मछली पालन, पर्यटन इत्यादि जैसे अन्य लाभ प्रदान कर रही है परन्तु फिर भी इसकी पूर्ण क्षमता का उपयोग नहीं किया जा सका।
यह जानकारी एचटीसी के प्रबंधक निदेशक आर .के विश्नोई ने बताया कि आज तक टिहरी जलाशय का स्तर पूर्ण जलाशय स्तर (एफआरएल), ईएल 830 मीटर तक नहीं भर सका था। टीएचडीसी इंडिया लिमिटेड के द्वारा परियोजना के लंबित पुनर्वास मुद्दों को उदार दृष्टिकोण से हल करने के बाद विद्युत मंत्रालय, भारत सरकार एवं उत्तराखंड सरकार के सक्रिय सहयोग से इस विशालकाय लक्ष्य को प्राप्त किया जा सका।
इसके बाद उत्तराखंड के मुख्यमंत्री, पुष्कर सिंह धामी ने जनता के व्यापक हितों को दृष्टिगत रखते हुए 25 अगस्त, को टिहरी जलाशय के स्तर को ईएल 830 मीटर तक भरने की अनुमति प्रदान की । इससे पूर्व टीएचडीसी इंडिया लिमिटेड को टिहरी जलाशय को पूर्ण स्तर तक भरने की अनुमति नहीं थी तथा परियोजना से जल एवं विद्युत की पूरी क्षमता का दोहन नहीं हो पा रहा था।
यह जानकारी डॉ. ए. एन. त्रिपाठी, उप महाप्रबन्धक कॉरपोरेट संचार ने देते हुए बताया कि टिहरी बांध परियोजना भागीरथी नदी पर एक बहुउद्देश्यीय जल विद्युत परियोजना है और टिहरी बांध अर्थ एंड रॉक फिल बांधों में तीसरा सबसे ऊंचा बांध है, तथा यह विश्व के सभी प्रकार के सबसे ऊंचे बांधों में 10वें स्थान पर है। टिहरी परियोजना में 260.5 मी. ऊंचा अर्थ एंड रॉक फिल बांध एवं एक भूमिगत विद्युत गृह शामिल है। पावर हाउस में 04 मशीनें लगी हैं जिनमें प्रत्येक मशीन की क्षमता 250 मेगावाट है। टिहरी बांध परियोजना में मानसून के दौरान लगभग 2615 एमसीएम बाढ़ के अधिशेष पानी को संग्रहित करने की क्षमता है ।
मानसून के पश्चात, संग्रहित जल उत्तर प्रदेश के गंगा के मैदानी इलाकों में 8.74 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई में काम आता है तथा नई दिल्ली की लगभग 40 लाख आबादी के लिए 300 क्यूसेक पेयजल और उत्तर प्रदेश की लगभग 30 लाख आबादी के लिए 200 क्यूसेक पेयजल उपलब्ध कराता है। वास्तविक अर्थ में टिहरी परियोजना दिल्ली और आगरा की पेयजल आवश्यकताओं को पूरा करती है ।
परियोजना की वजह से टिहरी कमांड क्षेत्र के किसान वर्ष में 3 फसलों का उत्पादन करने में भी सक्षम हुए हैं। टिहरी बांध लीन पीरियड के दौरान गंगा नदी में अतिरिक्त पानी छोड़ता है जिससे हरिद्वार और प्रयागराज में विभिन्न “पवित्र स्नान” और “पर्वों” के लिए जल की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके । यह उत्तराखण्ड सरकार एवं उत्तर प्रदेश सरकार की मांग के अनुसार “कुंभ मेला” के दौरान गंगा नदी में जल का समुचित प्रवाह बनाए रखना सुनिश्चित करता है ।
टिहरी जल विद्युत संयंत्र उत्तरी ग्रिड को 1000 मेगावाट की पीकिंग पावर और सालाना 3000 मिलियन यूनिट से अधिक ऊर्जा प्रदान करता है, जिसमें से 12% उत्तराखंड राज्य को नि:शुल्क प्रदान की जाती है। इस प्रकार, टिहरी परियोजना समाज के लोगों के लिए एक वरदान साबित हुई है और माननीय मुख्यमंत्री जी के टिहरी जलाशय को पूर्ण स्तर तक भरने के निर्णय के साथ अब ये लाभ और अधिक बढ़ने की संभावना है ।टिहरी बांध परियोजना की संकल्पना वर्ष 1949 में की गई थी।
और इसे वर्ष 1986 में भारत सरकार एवं उत्तर प्रदेश सरकार के एक संयुक्त उपक्रम कंपनी के रूप में मान्यता प्रदान की गई। भारत और रूस के बीच एक द्विपक्षीय तकनीकी-आर्थिक समझौते पर 1986 में हस्ताक्षर किए गए। इस योजना को कार्यान्वित करने के लिए 1988 में टीएचडीसी इंडिया लिमिटेड (पूर्व में टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉरपोरेशन) का गठन किया गया । बांध की सुरक्षा और जल एवं पर्यावरण की गुणवत्ता पर इसके प्रभाव से संबंधित विवादास्पद मुद्दे भी उठते रहे हैं।
इन मुद्दों पर विचार-विमर्श करने के लिए कई सरकारी विभागों और प्रख्यात वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों के पैनल गठित किए गए और उनकी सिफारिशों के बाद, 1990 में अपस्ट्रीम कॉफ़र डैम के निर्माण के साथ मुख्य बांध का निर्माण शुरू हुआ। भारतीय और रूसी विशेषज्ञों द्वारा बांध की भूकंपीय सुरक्षा की फिर से समीक्षा की गई। भारत सरकार ने 1994 में परियोजना के कार्यान्वयन को मंजूरी दी और बांध कार्यों का वास्तविक निर्माण 1995 में शुरू हुआ। परियोजना संरचनाओं का निर्माण रुक-रुक कर विरोध के साथ जारी रहा और अंततः 2005 में पूरा किया जा सका। परियोजना की कमीशनिंग अक्टूबर, 2005 में शुरू हो सकी जब माननीय उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने टिहरी जलाशय को भरना शुरू करने के लिए अंतिम डायवर्जन सुरंग (टी-2) को बंद करने की अनुमति दी। अक्टूबर 2005 में जलाशय को भरने की शुरुआत के बाद, एक के बाद एक पावर हाउस की चारों यूनिटों की कमीशनिंग का कार्य संपन्न हुआ।
और परियोजना पूरी तरह से जुलाई, 2007 में कमीशन कर दी गई ।टिहरी जलाशय का प्रारंभिक भराव एक चुनौतीपूर्ण कार्य था क्योंकि टिहरी बांध भारत में सबसे अधिक ऊंचाई का पहला अर्थ एवं रॉक फिल बांध है। टीएचडीसी इंडिया लिमिटेड ने हर तरह की सावधानी बरती और विश्वभर में सबसे ऊंचे बांधों को प्रारंभिक अवस्था मे भरने के बारे में उपलब्ध तकनीकी साहित्य एवं आंकड़ों की समीक्षा की । इसके साथ ही संस्थापित किए गए उपकरणों और भूगर्भीय प्रेक्षणों के माध्यम से संरचनाओं की नियमित निगरानी के कार्यक्रम के साथ-साथ जलाशय को भरने का कार्यक्रम तैयार करने के लिए विख्यात जल परियोजना विशेषज्ञों से परामर्श लिया गया ।
अक्टूबर, 2005 में अंतिम सुरंग टी-2 के बंद होने के बाद जलाशय धीरे-धीरे अक्टूबर 2006 अर्थात प्रथम चरण के भराव पूर्ण होने के स्तर ईएल (+) 638 मीटर से ईएल (+) 785 मीटर तक भर गया। इसके बाद, नवंबर, 2006 से जून, 2007 तक जलाशय वापस ईएल 740 मीटर के स्तर पर आ गया।वर्ष 2020 तक, जलाशय ईएल 828 मी. तक भरा गया, क्योंकि उत्तराखण्ड सरकार ने टीएचडीसीआईएल को जलाशय के स्तर को केवल 828मी. तक भरने की अनुमति दी थी।
ईएल 830 मीटर तक भरने की अनुमति इस वर्ष अगस्त, 2021 में राज्य सरकार द्वारा दी गई है। जलाशय 11 सितंबर को ईएल 828 मीटर तक पहुंचा और उसके बाद मानकों के अनुसार 48 घंटे में @ 0.30 मीटर का भराव करते हुए 24 सितंबर, 2021 को ईएल (+) 830 मीटर तक पहुंचा।
24 सितंबर, 2021 टिहरी बांध परियोजना के लिए एक ऐतिहासिक तारीख बन गई है, जिसकी कई साल पहले कल्पना की गई थी, यह सभी प्रकार से परियोजना की पूरी क्षमता हासिल करने की तारीख है । 24 सितंबर 2021 टिहरी बांध परियोजना के इतिहास में एक नए युग की शुरुआत के रूप में याद किया जाएगा, जहां से इसने समाज को अपना सर्वश्रेष्ठ और पूर्ण लाभ पहुंचाना शुरू किया।
इस उपलब्धि का अधिकांश श्रेय मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और सिंचाई मंत्री सतपाल महाराज के मार्गदर्शन में राज्य के वर्तमान राजनीतिक नेतृत्व को जाता है।भारत सरकार के विद्युत मंत्रालय के द्वारा की गई सकारात्मक बातचीत ने भी इस ऐतिहासिक उपलब्धि को हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
टीएचडीसी इंडिया लिमिटेड के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक, परियोजना से जल एवं विद्युत की पूरी क्षमता का दोहन नहीं हो पा रहा के नेतृत्व में निगम के शीर्ष प्रबंधन ने इस बहुप्रतीक्षित लक्ष्य को हासिल करने के लिए उत्तराखंड सरकार को धन्यवाद दिया और राज्य की जनता को बधाई दी।
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