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सर्वपितृ अमावस्या पर त्रिवेणी घाट से राम झूला तक श्रद्धालुओं ने अपने पितरों की मुक्ति के लिए किया गंगा स्नान के उपरांत श्राद्ध तर्पण पूजा पाठ


पूजा पाठ करने के लिए श्रद्धालुओं को ब्राह्मणों के अभाव में करना पड़ा घंटों इंतजार

ऋषिकेश,0 6 अक्टूबर ।  सर्वपितृ अश्वनि अमावस्या के अवसर पर देश के विभिन्न प्रांतों से आए जहां लाखों लोगों ने गंगा में स्नान कर अपने पितरों की मुक्ति के लिए श्राद्ध तर्पण पूजा पाठ कर गरीबों व ब्राह्मणों में दान दिया ।वही आसपास के क्षेत्रों से काफी संख्या में त्रिवेणी घाट से राम झूला के तमाम घाटों पर स्थानीय लोगों ने भी अपने पितरों की मुक्ति की कामना की।

बुधवार की सुबह से ही अपने पितरों की मुक्ति के लिए देश के विभिन्न प्रांतों से गंगा स्नान कर पूजा पाठ करने वाले श्रद्धालुओं के कारण ऋषिकेश के त्रिवेणी घाट से राम झूला तक अपने पितरों की मुक्ति के लिए पूजा पाठ करने वाले श्रद्धालुओं को ब्राह्मणों के अभाव के कारण घंटो तक अपनी बारी का इंतजार भी करना पड़ा।

इस दौरान त्रिवेणी घाट पर पंडित वेद प्रकाश सहित अन्य ब्राह्मणों द्वारा सामूहिक पूजा-पाठ व तर्पण आदि की व्यवस्था भी की गई थी पंडित वेद प्रकाश का कहना था कि सर्वपितृ अमावस्या के अवसर पर गंगा स्नान व घरों में यदि पानी में तिल डालकर स्नान किए जाने के साथ पीपल में कच्चा दूध चढ़ाया जाए सतो उससे पित्तर प्रसन्न होते हैं ।इस दिन श्राद्ध तर्पण पूजा-पाठ और दान की परंपरा भी है, सर्वपितृ अमावस्या के दिन उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है। जिनके परिजनों को पित्रो की देहांत की तिथि मालूम नहीं होती है। या वह उन्हें भूल चुके होते हैं ।

बताया जाता है कि इस दिन श्राद्ध करने से भोजन पितरों को स्वतः मिल जाता है । इस दिन पितरों को अर्पित किया गया भोजन उस रूप में परिवर्तित हो जाता है ।जिस रूप में उनका जन्म हुआ होता है। अगर मनुष्य योनि में हो तो अन्य रूप में उन्हें भोजन मिलता है। और पशु योनि में हो तो घास रूप में ,नाग योनी में हो तो वायु रूप में, और यक्ष योनि में हो तो पान के रूप में भोजन पहुंचाया जाता है। उनका कहना था कि यह भी मान्यता है कि श्राद्ध करने से पित्र प्रसन्न होते हैं, और उनका आशीर्वाद भी मिलता है ।

शास्त्रों के अनुसार पितरों के लिए बनाए गए भोजन से पहले पंच भोग लगाया जाता है ।जिसमें भोजन करने से पहले ग्रास गाय ,कुत्ते ,कौवे व चिंटी और देवों के लिए निकाला जाता है ।इसके उपरांत ही ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है, कहते हैं कि पित्रों के लिए जो भोजन बनाया जाये वह साफ-सुथरे वस्त्र धारण कर ही बनाना चाहिए, पितृपक्ष के आखिरी दिन पिंड दान की क्रिया की जाती है । इसके पहले घरों में शाम को 2या5 और 16 दीपक जलाए जाते हैं। ऐसा करने से पित्र खुश रहते हैं ।


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