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कलाकारों की कला की विशेषता, विशिष्टता और विलक्षण पर ध्यान देना आवश्यक- स्वामी चिदानन्द सरस्वती


ऋषिकेश, 25 अक्टूबर। अंतर्राष्ट्रीय कलाकार दिवस सभी प्रकार की कलाओं का एक उत्सव है। यह दिन कलाकारों को एक मंच प्रदान करता हैं, जहां उनकी कला को एक पहचान मिल सके तथा जनसमुदाय के बीच कलाकारों की विश्वसनीयता और कला को बढ़ाया जा सके।

अंतर्राष्ट्रीय कलाकार दिवस के अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि कलाकर अपने अन्दर की भावनाओं से बेजान चीजों में भी जान डाल देते हैं। अपनी कलाओं, कार्यों और भावनाओं से ये जनमानस पर एक विशिष्ट छाप छोड़ते हैं और एक क्रांति लाते हैं। कलाकार अपनी कलात्मक बहुमुखी प्रतिभा द्वारा उपयोगी सामग्री, पैटर्न और डिज़ाइन बनाकर जनसामान्य का जीवन सरल बनाते हैं इसलिये उनकी रचनात्मकता का संरक्षण किया जाना चाहिये। हमें कलाकारों की कला की विशेषता, विशिष्टता और विलक्षण पर ध्यान देकर उन्हें प्रोत्साहन और पहचान देना होगा। उन्होंने न कहा कि कला जीवन की त्रासदी, निराशा, आघात और अवसाद को दूर करने में मदद करती है और यह सिखाती है कि यह दुनिया एक रंगमंच है, और हम सिर्फ परमात्मा के बनाये हुये पात्र हैं।

अन्तर्राष्ट्रीय कलाकार दिवस के अवसर पर परमार्थ निकेतन द्वारा संचालित परमार्थ नारी सशक्ति व्यवसायिक केन्द्र के प्रशिक्षकों ने स्वामी चिदानन्द सरस्वती से भेंट कर आशीर्वाद लिया तथा स्वामी ने केन्द्र में बनाये उत्पादों का अवलोकन किया
स्वामी ने कहा कि 20 वीं सदी तक स्थानीय कलाकार मिट्टी के बर्तन, मूर्तियां, आभूषण, टेराकोटा, पत्थर की मूर्तिया, कांस्य की मूर्तियाँ, लकड़ी की कलात्मक मूर्तियां बनाते थे तथा उन्हें एक बाजार भी मिलता था ,परन्तु वर्तमान समय में यह सब धीरे-धीरे विलुप्त सा हो गया है। जिसके कारण उन कलाकारों के सामने रोजी-रोटी की समस्यायें भी उत्पन्न हो गयी हैं भारत सरकार ने भी इस दिशा में में कई महत्वपूर्ण कदम उठाये हैं ,परन्तु हम सभी को भी स्थानीय कला और कलाकारों को महत्व देना होगा। अभी दीपावली का पर्व आ रहा है ।जिसमें घरों में रोशनी करने के लिये मिट्टी के दीपों को इस्तेमाल करें जिससे उन्हें रोजगार मिलेगा और प्राचीन संस्कृति भी बची रहेगी।

स्वामी ने कहा कि युवा पीढ़ी और बच्चों को चित्र उकेरने या पेंटिंग बनाने के लिये प्रेरित करना होगा ताकि उन्हें अपनी प्रतिभा विकसित करने का अवसर प्राप्त हो। आजकल के बच्चे मोबाइल फोन में व्यस्त रहते हैं जिससे वे प्राचीन संस्कृति को भूलते चले जा रहे हैं। हमारी संस्कृति जीवंत रहें यही हम सबका उद्देश्य होना चाहिये।


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