ऋषिकेश,23 अप्रैल । विश्व पुस्तक दिवस के अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि कोविड-19 के समय में जब लोगों का अधिकतर समय अपने घर में रहकर बीत रहा है, ऐसे में किताबें और किताब पढ़ने की आदत ही सबसे अच्छी मित्र हो सकती है। कोरोना महामारी से बचने के लिये घर पर पुस्तकों के साथ रहने; अध्ययन करने से ज्ञान में वृद्धि के साथ सकारात्मकता का भी विकास होगा। स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि वर्तमान समय में तकनीक विकास के युग में समाज का परिदृश्य काफी बदला है अब बच्चों के हाथों में किताबों के स्थान पर मोबाईल फोन है। किताबें विभिन्न भारतीय भाषाओं के साथ अपनी संस्कृति और संस्कारों से जोड़ती है। किताबें तनाव को कम करने का सबसे अच्छा माध्यम हैं। कोविड-19 के कारण लोग तनाव और मनोवैज्ञानिक दबाव से गुजर रहे हैं तथा कई लोग अपनों से दूर हैं ऐसे में किताबें (श्रेष्ठ साहित्य) ही सबसे अच्छी मित्र होती हैं वे हमारी पथ प्रदर्शक बन कर न सिर्फ हमें ज्ञान देती हैं, बल्कि अकेलेपन को भी दूर करती हैं। किताबें अतीत और वर्तमान के बीच एक पुल की तरह कार्य करती हैं।
किताबों को समर्पित आज का दिन पुस्तकें पढ़ने की आदत को बढ़ावा देने तथा उनकी जीवन में अहमियत की भी याद दिलाता है। साथ ही किताबें हमें अपने बीते हुए कल से जोड़ती हैं और भविष्य के लिए मार्गदर्शक की तरह होती हैं। स्वामी ने कहा कि किताबें हमारा बौद्धिक खजाना है जो कि देश के बौद्धिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं।
एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में नये विचारों, संस्कारों और संस्कृति को पहुंचाने का कार्य करती हैं इसलिये युवा पीढ़ी को किताबें पढ़ने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। स्वामी ने युवाओं को अपने विचारों को लिपिबद्ध करने के लिये प्रोत्साहित करते हुये कहा कि भगवान श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया संदेश लिपिबद्ध न होता हो आज दुनिया गीता के ज्ञान से अन्भिज्ञ होती। सदियों पुरानी अनेक पुस्तकें आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी उस समय थीं इसलिये पुस्तकों के साथ अपने रिश्ते को मजबूत करें क्योंकि वे हमारी संस्कृति की वाहक होती हैं।
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