पश्चिम देशों के राष्ट्रवाद और भारत के राष्ट्रवाद में भिन्नता है- मनमोहन वैद्य
ऋषिकेश, 26 सितम्बर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर सह कार्यवाह मनमोहन वैद्य ने कहा कि पश्चिम देशों के राष्ट्रवाद और भारत के राष्ट्रवाद में भिन्नता है, भारत का राष्ट्रवाद आध्यात्मिकता एवं संस्कृति पर आधारित अखिल राष्ट्रवाद है। और पश्चिम का राष्ट्रवाद मात्र अपने देश के लिए राष्ट्रवाद कह लाता है।
जिस के अंतर को हमें समझना होगा। यह विचार मनमोहन वैद्य ने ऋषिकेश में आयोजित भरत मंदिर इंटर कॉलेज के प्रांगण में एक कार्यक्रम के दौरान मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त करते हुए कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा देश में किए जा रहे कार्य को एक 100 वर्ष होने जा रहे हैं।
जिसने अपने कार्य के दम पर भारत ही नहीं पूरे विश्व में एक पहचान बनाई है ,जोकि विभिन्न क्षेत्रों में 40 से अधिक संगठनों के माध्यम से सेवा के कार्यों में कार्यरत है। और संघ की पहचान भी सेवा कार्यों के कारण बनी है।आज दुनिया के लोग भी भारत को आध्यात्मिकता की दृष्टि से देखना चाहते हैं।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने एक सौ वर्ष की यात्रा में संगठन के माध्यम से विभिन्न आयामों को छुआ है, जिसके कारण आज पूरे विश्व में संघ की चर्चा परिचर्चा सकारात्मक भाव से होती है ,और यह स्थिति संघ के सकारात्मक क्रियाकलापों से ही निर्मित हुई है। उन्होंने संघ के सभी स्वयंसेवकों को अपने उद्बोधन में कहा कि संघ का मूल कार्य शाखा है, जहां एक घंटे की शाखा से परिवर्तन के नए आयामों को गढ़ने की कला आती है । जिसका मुख्य उद्देश्य विभिन्न क्षेत्रों में हर तबके में हर वर्ग में संघ का कार्य पहुंचना है।
उसके लिए संघ अपने सेवा संपर्क और प्रचार जैसे आयामों के माध्यम से कार्य करते हुए आगे बढ़ रहा है। संघ की स्थापना के बाद पहले 25 वर्ष संगठनात्मक कार्य हुए फिर 25 वर्ष बाद अनेक वर्गों में अपना प्रतिनिधित्व बनाने का कार्य हुआ, उसके पश्चात 50 वर्ष बाद ऐसे कार्य में जिनकी देश काल वातावरण अनुसार अत्यधिक आवश्यकता महसूस हुई को किया गया है । उनका कहना था कि वर्तमान समय में आवश्यकता इस बात की है कि संघ का कार्य प्रत्येक परिवार में पहुंचे, क्योंकि परिवार भी राष्ट्र का मुख्य घटक है। परिवार से ही राष्ट्र की विचारधारा और संस्कार का जन्म होता है ,परिवार का निर्माण ही राष्ट्र का निर्माण है ।
इसलिए प्रत्येक परिवार तक संग पहुंचे और परिवार में एक दिन सामूहिक रूप से मिल बैठकर के भजन कीर्तन चर्चा निरंतर हो इस पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि संपूर्ण विश्व में अभी मात्र 15 परसेंट संघ शक्ति के जागरण होने से सकारात्मकता की यह स्थिति उत्पन्न हुई है, यदि 80% हिंदू शक्ति सृज्जन शक्ति संगठित हो जाए तो वह दिन दूर नहीं जब पूरा विश्व संघ के व्यवहार से संचालित हो सकता है ।
उत्तराखंड के प्रांत प्रचारक युद्धवीर ,धनीराम, भारत भूषण, सुदाम सिघल , विपिन कर्णवाल सहित काफी संख्या में संघ के स्वयंसेवक उपस्थित थे ।
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