अंग्रेजों के विरुद्ध ‌ऋषिकेश के खारा स्रोत में तोड़ा गया था नमक कानून, ऋषिकेश के मुनिकिरेती स्थित खाराश्रोत का नाम नमक आंदोलन के दौरान ही पड़ा – नमक कानून तोड़ने पर ऋषिकेश के 70 साधु संत सहित देहरादून जनपद से करीब 400 आंदोलनकारी गए थे जेल  ऋषिकेश में मार्गों के नाम पर याद किए जाते हैं सेनानी


ऋषिकेश:‌ 13 अगस्त। गढ़वाल के मुख्य द्वार ऋषिकेश की ‌ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ पूरे देश में हुए स्वतंत्रता प्राप्ति आंदोलन में बड़ी भूमिका रही है। जिसका लोहा अंग्रेजों ने भी माना है। महात्मा गांधी के आह्वान पर जब दांडी मार्च निकाला गया और नमक सत्याग्रह की शुरुआत हुई तो ऋषिकेश के मुनिकीरेती स्थित खाराश्रोत में आंदोलनकारियों ने नमक कानून तोड़ा था। नमक कानून तोड़ने पर देहरादून जनपद से करीब 400 आंदोलनकारी जेल गए, जिनमें 70 ऋषिकेश के संत और साधु थे।

दांडी यात्रा यानि नमक सत्याग्रह की शुरुआत 12 मार्च 1930 को हुई थी। महात्मा गांधी के नेतृत्व में 24 दिन का यह अहिंसा मार्च छह अप्रैल को दांडी पहुंचा और अंग्रेजों का बनाया नमक कानून तोड़ा। ऋषिकेश के मुनिकिरेती स्थित खाराश्रोत का नाम नमक आंदोलन के दौरान ही पड़ा। 1929-30 के नमक सत्याग्रह में देहरादून क्षेत्र से 400 लोग जेल गए, जिनमें ऋषिकेश के 70 साधु थे। इनमें पंजाब से आए स्वामी केवलानंद, स्वामी सदानंद, उड़ीसा से आए बाबा रामदास, स्वामी आनंदिगिरी व गुजरात से आए ब्रह्मचारी हरिजीवन प्रमुख थे। नमक सत्याग्रह के समय खारा श्रोत में नमक बनाया जाता था तथा थैलियों में भरा जाता था। टिहरी के प्रजामंडल में यहां के नागरिकों ने योगदान दिया।

सरदार भगतसिंह के शहीद होने पर भरत मंदिर के नीचे ढलान पर स्थित आश्रम में स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी स्वामी केवलानंद ने उनकी आत्मा की शांति के लिए श्रीमद्भागवत सप्ताह आयोजित कराया और सभी संस्कार यहीं किए गए। आज भी इस आश्रम को स्वामी केवलानंद के नाम से जाना जाता है।

इसके बाद बारडोली सत्याग्रह में भाग लेने के लिए एक सभा हर्रावाला में आयोजित की गई। ऋषिकेश नगर के अधिकतर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी 1930 के नमक आंदोलन में जेल गए। भोगपुर, डांडी, रानीपोखरी, श्यामपुर आदि स्थानों के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ऋषिकेश आकर अपनी गतिविधियां चलाते थे। इनमें बड़कोट के गणेशदत्त सकलानी, डांडी के प्यारेलाल, लक्ष्मीप्रसाद व पंडित खेमचंद के नाम प्रमुख हैं।

मार्गों के नाम पर याद किए जाते हैं सेनानी

शिक्षाविद बंशीधर पोखरियाल बताते हैं कि ऋषिकेश क्षेत्र में सड़कों के नाम आज भी इन स्वतंत्र सेनानियों के नाम पर जाने जाते हैं। जिनमें केवलानंद मार्ग, बाबा सदानंद मार्ग,अद्वेतवानन्द मार्ग, मनीराम मार्ग, चेला चेतराम मार्ग, मुखर्जी मार्ग, तिलक मार्ग, लाजपत राय मार्ग, देवी दत्त तिवारी मार्ग, बाबूलाल वर्मा मार्ग, धनेश शास्त्री मार्ग, देवकीनंदन गुप्ता मार्ग, माधवराम डोभाल मार्ग, भगवानदास मुल्तानी मार्ग आदि शामिल हैं।

देहरादून के खाराखेत गांव में भी तोड़ा नमक कानून
अस्थायी राजधानी देहरादून से 18 किमी दूर स्थित खाराखेत गांव आज भी लोगों में देशभक्ति का जज्बा पैदा करता है। यह वही गांव है, 1930 में गांधीजी के नमक सत्याग्रह के आह्वान पर आजादी के मतवालों ने जहां नून नदी में नमक बनाकर ब्रिटिश हुकूमत को चुनौती दी थी। यहां नून नदी का पानी नमकीन है। पछवादून का एतिहासिक खाराखेत गांव आजादी के बाद भले ही सरकारों की उपेक्षा झेलता रहा हो, लेकिन आम जनमानस के लिए यह हमेशा प्रेरणा का स्रोत रहा।
वर्ष 1930 में महात्मा गांधी के नेतृत्व में आजादी के दीवाने देशभर में नमक कानून तोड़ने के लिए एकजुट हो रहे थे। भला देहरादून जनपद इससे अछूता कैसे रहता। 20 अप्रैल की दोपहर अखिल भारतीय नमक सत्याग्रह समिति के बैनर तले आंदोलनकारी महावीर त्यागी व साथियों की अगुआई में आजादी के मतवाले खाराखेत में एकत्रित हुए और नमक बनाकर ब्रिटिश हुकूमत को चेताया कि अब बहुत दिनों तक उसकी मनमानी नहीं चलने वाली। आंदोलनकारियों ने वहां सात मई 1930 तक छह टोलियों में नून नदी पर नमक बनाया और फिर शहर के टाउन हाल में बेचते हुए गिरफ्तार हुए।

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