ऋषिकेश/गुप्तकाशी 15 अप्रैल। गुप्तकाशी क्षेत्र के देवाधिदेव जाख देवता के दहकते अंगारों पर नृत्य के साथ ही प्रसिद्ध जाख मेला संपन्न हुआ, इस दौरान हजारों भक्तों ने भगवान ही यक्ष से आशीर्वाद ग्रहण सुख समृद्धि की कामना की। ठीक 2 बजे जैसे ही भगवान यक्ष नर पश्वा के रूप में अवतरित हुए, संपूर्ण केदार घाटी भगवान यक्ष के जयकारों से गूंजने लगी । जाख देवता के नर पश्वा ने विशाल अग्निकुंड में धधकते अंगारों पर तीन बार नंगे पांव नृत्य करके लोगों की बलाय ली। इस दौरान देवशाल कोठेड़ा के पुजारियों तथा स्थानीय 11 गांव के भक्तों ने भगवान यक्ष के प्रत्यक्ष दर्शन किए। भगवान जाख देवता को बरसात के देव के रूप में भी जाना जाता है। गत 3 दिनों से नारायण कोटि, कोठेड़ा और देवशाल के श्रद्धालुओं द्वारा गोठी का आयोजन किया गया था। संक्रांति को विशाल अग्निकुंड निर्मित, कर पुजारियों के मंत्रोचार के साथ ही इस हवन कुंड को अग्नि दी गई। रात भर यह लकड़िया जलती रही। सुबह विशाल अग्निकुंड का पूजन अर्चन कर भगवान जाख देवता का इंतजार करने लगे। नारायण कोटी गांव से भगवान यक्ष के नर पश्वा के रूप में हजारों श्रद्धालुओं के साथ ढोल नगाड़ा और रणभेरी के मधुर संगीत के साथ अपने देवशाल स्थित विंध्यवासिनी मंदिर पहुंचकर विश्राम किया। देवशाल गांव के बीचो-बीच स्थित इस मंदिर की तीन परिक्रमाएं पूर्ण कर कुछ पल यहां विश्राम लिया। तदुपरांत भगवान जाख की कंडी और जलते दिए के सानिध्य में यक्ष के नर पश्वा ने जाख मंदिर की ओर कूच किया। यहां पहुंचकर बांज के पेड़ के नीचे कुछ पल विश्राम करके ढोल नगाड़ों के सुंदर स्वर लहरी के टकराव के बीच में नर पश्वा के शरीर में भगवान यक्ष विराजित हुए ,और हजारों भक्तों के जयकारे के बीच में विशाल हवन कुंड के दहकते अंगारों पर तीन बार नृत्य करके लोगों की बलाएं ली। नृत्य के बाद भक्तों ने इस अग्निकुंड की राख भभूत को निकालकर प्रसाद रूप में ग्रहण किया। इस दौरान जाख मंदिर के चारों ओर विभिन्न प्रकार की दुकानें सुसज्जित हुई । दूरदराज क्षेत्रों से आए हुए धियाणियों ने एक दूसरे से मिलकर सुख-दुख साझा किया। गत वर्ष कोरोना काल के कारण सूक्ष्म स्वरूप में जाख मेला संपन्न हुआ था। लेकिन इस बार कोरोना काल की भयावहता के बावजूद भी आस्था और अध्यात्म पर सवार हज़ारों भक्त इस पल के साक्षी बने।
देवाधिदेव जाख देवता के दहकते अंगारों पर नृत्य के साथ ही प्रसिद्ध जाख मेला संपन्न हुआ

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