भाजपा हाईकमान की राह त्रिवेंद्र सिंह रावत ने की आसान, एक तीर से हुए कई निशाने डोईवाला से प्रेमचंद , ऋषिकेश से सुबोध , नरेंद्र नगर से ओम गोपाल रावत बनने जा रहे प्रत्याशी


ऋषिकेश 20 जनवरी।  पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा डोईवाला विधानसभा क्षेत्र से चुनाव ना लड़ने की इच्छा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को लिखे गए पत्र के माध्यम से ऐसे ही व्यक्त नहीं की गई है, जिसके पीछे कई रहस्य भी छिपे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के नजदीकी राजनीतिक पंडितों का कहना है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत को लग गया था, कि उनका डोईवाला क्षेत्र में काफी विरोध है ,जिसका कारण कार्यकर्ताओं के बीच आपसी सामंजस्य ना होने के कारण कार्यकर्ताओं में भारी रोष का होना तो है ही, वहीं उन्होंने कभी कार्यकर्ताओं की समस्याओं को न सुनने के साथ उनके कार्य भी नहीं किए हैं। जबकि उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद कार्यकर्ताओं में उनसे काफी अपेक्षाएं थी,  जिसके कारण उनके नजदीकी लोग भी उनसे काफी छिटक गए थे, जिसके कारण उन्हें लग गया था कि वह अब डोईवाला विधानसभा चुनाव की नैया पार नहीं कर सकते हैं ,इसलिए उन्होंने अपनी इज्जत बचाने के लिए जेपी नड्डा को लिखे पत्र के माध्यम से अपनी डोईवाला विधानसभा क्षेत्र से चुनाव ना लड़ने की इच्छा व्यक्त की है।

पुराने पिछले पूरे घटनाक्रम पर नजर डालें तो विधानसभा अध्यक्ष और कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल की नाराजगी भी त्रिवेंद्र रावत को पत्र लिखने की  मजबूरी बनी है।ऋषिकेश विधानसभा क्षेत्र से पिछले 15 वर्षों से विधायक बने प्रेमचंद अग्रवाल की इच्छा अपने पैतृक घर वापसी कर डोईवाला विधानसभा क्षेत्र से ही चुनाव लड़ने की पिछली बार व्यक्त की गई थी, परंतु राष्ट्रीय संगठन मंत्री रामलाल के वरदहस्त के कारण उन्हें ऋषिकेश विधानसभा क्षेत्र से ही चुनाव लडवाया गया था, जिसमें उन्होंने भारतीय जनता पार्टी की प्रतिष्ठा बचाते हुए चुनाव में विजय हासिल की थी ।लेकिन उस पत्र को ध्यान में रखते हुए भाजपा हाईकमान द्वारा इस बार उनकी इच्छा को भी ध्यान में रखा गया है, वही नरेंद्र नगर विधानसभा क्षेत्र से कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल और भाजपा नेता ओम गोपाल रावत के बीच चल रही टिकट को लेकर रस्साकशी को भी भाजपा हाईकमान ने ध्यान में रखा है। पिछले चुनाव में सुबोध उनियाल ने यह सीट गोपाल रावत से मात्र एक इकाई के अंतर से जीती थी ःजिसके कारण भाजपा कार्यकर्ताओं में काफी रोष तभी से चला आ रहा था, इतना ही नहीं सुबोध उनियाल के वरदहस्त के कारण गोपाल रावत का नगर पालिका मुनि की रेती क्षेत्र का प्रत्याशी भी मात्र कुछ ही मतों के अंतर से पराजित होना भी भाजपा कार्यकर्ताओं के रोष का कारण बना है ,जिससे पार्टी के द्वारा कराए गए सर्वे में यह स्पष्ट हो गया है, कि इस सीट पर यदि ओम गोपाल रावत निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में सुबोध उनियाल के सामने दावेदार बन गए तो यह सीट खतरे में पड़ सकती है। जिसे लेकर भाजपा हाईकमान भी असमंजस की स्थिति में फंसा थाः परंतु त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा डोईवाला सीट से चुनाव ना लड़ने की इच्छा के चलते तीन विधानसभा पर इसका प्रभाव पड़ेगाः जिसमें यदि विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल को डोईवाला से लड़ वाया जाएगा,और सुबोध उनियाल को ऋषिकेश विधानसभा से और ओम गोपाल को नरेंद्र नगर विधानसभा से चुनाव मैदान में उतार दिया जाएगा ,तो तीनों सीट भाजपा की झोली में आसानी से जा सकती हैं। क्योंकि तीनों सीटों पर कांग्रेस व अन्य दलों के बीच कोई दमदार उम्मीदवार अभी तक जनता के बीच अपनी घुसपैठ नहीं बना पाया है ।जबकि भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता तीनों सीटों को भाजपा की झोली में डालने के लिए तैयार हैं, लेकिन यह तभी संभव है की तीनों सीटों पर कार्यकर्ताओं की अपेक्षाओं के अनुरूप उम्मीदवारों को उतारा जाएगा। इस कारण भारतीय जनता पार्टी के तीनों विधानसभा क्षेत्रों में कार्यकर्ताओं की नाराजगी भी दूर हो जाएगी।

 

आगामी 14 फरवरी को होने वाले उत्तराखंड चुनाव की सरगर्मी को देखते हुए जहां भारतीय जनता पार्टी का कार्यकर्ता चुनाव मैदान में डिजिटल प्रचार माध्यम के साथ चुनाव मैदान में लगा हुआ है वही पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा नए नगर विधानसभा क्षेत्र के प्रबल दावेदार सुबोध उनियाल के धुर विरोधी ओम गोपाल रावत के साथ कुंजापुरी मंदिर में गल भैया करते हुए दर्शन करने को भी नरेंद्र नगर विधानसभा क्षेत्र में कई दृष्टि से देखा जा रहा है कुछ कार्यकर्ताओं का मानना है कि जब पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का वरदहस्त ओम गोपाल रावत को प्राप्त है ,और वह उनको टिकट दिलाने की वकालत कर रहे हैं तो आम कार्यकर्ता आपस में दूरियां क्यों बढ़ाएं क्योंकि इस समय पूरी तरह तटस्थ बना हुआ है, आम कार्यकर्ताओं का मानना है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत ने संगठन मंत्री होते भी आम कार्यकर्ताओं के आपस में लड़ाने का ही काम किया है और आज भी वह उसी नीति पर चल रहे हैं।

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