ऋषिकेश: छठ पर्व के दूसरे दिन महिलाओं ने गंगा स्नान कर प्रसाद के रूप में गुड़ से बनी खीर का सेवन किया सार्वजनिक छठ पूजन समिति ने त्रिवेणी घाट पर भगवान सूर्य एवं छठ माता की करी मूर्ति स्थापित


ऋषिकेश, 29अक्टूबर । छठ पर्व के दूसरे दिन लोक आस्था के प्रतीक छठी पर्व के चलते व्रती महिलाओं ने पूजा अर्चना के साथ गंगा स्नान कर जहां गुड़ की बनी खीर का प्रसाद खरना के चलते ग्रहण किया, वही सार्वजनिक छठ पूजन समिति ने त्रिवेणी घाट पर पूजा अर्चना के साथ भगवान सूर्य एवं छठ माता की मूर्ति स्थापना की।

शनिवार को इस दौरान समिति के अध्यक्ष रामकृपाल गौतम, कार्यक्रम अध्यक्ष शंभू पासवान, कार्यक्रम संयोजक प्रदीप दुबे ,,महासचिव परमेश्वर राजभर ,कोषाध्यक्ष वीर बहादुर राजभर, संरक्षक लल्लन राजभर सहित काफी संख्या में समिति से जुड़े लोग उपस्थित थे। उल्लेखनीय है कि सूर्योपासना का यह अनुपम लोकपर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है।

कहा जाता है यह पर्व मैथिल,मगध और भोजपुरी लोगो का सबसे बड़ा पर्व उनकी संस्कृति से जुड़ा है। छठ पर्व बिहार मे बड़े धुम धाम से मनाया जाता है। यह बिहार सहित पूरे भारत का ऐसा पर्व है जो वैदिक काल से चला आ रहा है और यह बिहार कि संस्कृति बन चुका हैं। यहा पर्व बिहार कि वैदिक आर्य संस्कृति कि एक छोटी सी झलक दिखाता हैं। यह पर्व मुख्यः रुप से ॠषियो द्वारा लिखी गई ऋग्वेद मे सूर्य पूजन, उषा पूजन और आर्य परंपरा के अनुसार बिहार मे यहा पर्व मनाया जाता हैं।

ऋषिकेश‌ के त्रिवेणी घाट पर सार्वजनिक सार्वजनिक छठ पूजन समिति ने शुक्रवार को छठ पूजा की शुरुआत सूर्य नारायण‌ का ध्वजारोहण कर की, सर्वप्रथम पहले दिन नहाय खाय किया जाता है जिसमे लौकी की सब्जी चना का दाल चावल बनाया गया। आज‌ दूसरे दिन खरना किया जाता है, जिसमे दिनभर का निर्जल उपवास किया गया,और शाम को गुुड की खीर रोटी का भोग लगाया जायेगा।भोग लगाने के उपरांत उस खीर और रोटी का प्रसाद खाया जाता है जिसके बाद फिर से निर्जला उपवास प्रारंभ हो जाता है और तीसरे दिन घर में चक्की में अपने हाथों से पीसे गए गेहूं, चावल के आटे से ठेकुआ और लड्डू को देसी घी में चूल्हे पर ही बनाया जाता है जिसमे सारे बर्तन पीतल के इस्तेमाल किये जाते है अगर जिससे पीतल के बर्तन नही हो पाता वो मिट्टी के बर्तन का प्रयोग करते हैं।

और प्रसाद बनाया जाता है उसको तैयार करने के बाद डलिया सजाया जाता है जो जैसे मन्नत करते हैं भगवान से उनके उतने डलिया होता है जैसे किसी के दो होते हैं तीन होते हैं डलिया इसी प्रकार से उसके उपरांत पूरा परिवार गंगा जी पर डूबते हुए सूरज को अरग दिया जाता है जब महिलाएं घाट पर जाती है तो उनके हाथों में कलश होता है और उनपर दिया रखा जाता है जिसको भुजने नही दिया जाता है सब घाट पर पहुंच कर ढलते सूरज को अरग दिया जाता है उसके बाद चौथे दिन उगते हुए सूरज को अरग दिया जाता है और छठ पूजा की समाप्ति होती है ।

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