ऋषिकेश के आश्रमों मे गुरु पूर्णिमा पर भक्तों ने अपने गुरुओ का किया पूजन , -गुरु दीक्षा लिए जाने के साथ अपने गुरुओं के प्रति की श्रद्धा व्यक्त


ऋषिकेश, 03 जुलाई । ऋषि मुनियों की तपस्थली ऋषिकेश के आश्रमों में गुरु पूर्णिमा के अवसर देश-विदेश के विभिन्न स्थानों से आए भक्तों ने अपने गुरु का विधि विधान से पूजन कर गुरु दीक्षा लिए जाने के साथ पर अपने गुरुओं के प्रति श्रद्धा व्यक्त की । भक्तों द्वारा अपने गुरुओं की पूजा किए जाने के लिए 1 दिन पहले ही ऋषिकेश आना प्रारंभ हो गया था जिन्होंने सुबह से ही गुरुओं का पूजन किया ।

इस दौरान श्री जयराम आश्रम, मायाकुंड स्थित भगवान गिरी आश्रम, कृष्ण कुंज आश्रम ,जनार्दन आश्रम ,तारा माता मंदिर, गीता आश्रम, जगन्नाथ आश्रम और भगवान आश्रम में धूमधाम के साथ अपने गुरुओं की पूजा अर्चना की गई ।

इस दौरान मायाकुंड स्थित भगवान गिरी आश्रम के पीठाधीश्वर भूपेंद्र गिरी ने कहा कि आषाढ़ माह के दिन ही महर्षि वेद व्यास ने अपने शिष्यों और ऋषि-मुनियों को श्री भागवत पुराण का ज्ञान दिया. तब से महर्षि वेद व्यास के 5 शिष्यों ने इस दिन को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाने और इस दिन गुरु पूजन करने की परंपरा की शुरुआत की। इसके बाद से हर साल आषाढ़ माह की पूर्णिमा के दिन को गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा के रूप में मनाया जाने लगा ।

तो वहीं जयराम आश्रम के पीठाधीश्वर ब्रह्म स्वरूप ब्रह्मचारी ने गुरु पूर्णिमा का महत्व बताते हुए कहा कि शास्त्रों में भी गुरु को देवताओं से भी ऊंचा स्थान प्राप्त है. स्वयं भगवान शिव गुरु के बारे में कहते हैं, ‘गुरुर्देवो गुरुर्धर्मो, गुरौ निष्ठा परं तपः। गुरोः परतरं नास्ति, त्रिवारं कथयामि ते।।’ यानी गुरु ही देव हैं, गुरु ही धर्म हैं, गुरु में निष्ठा ही परम धर्म है. इसका अर्थ है कि, गुरु की आवश्यकता मनुष्यों के साथ ही स्वयं देवताओं को भी होती है.गुरु को लेकर कहा गया है कि, ‘हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहिं ठौर’. यानी भगवान के रूठने पर गुरु की शरण मिल जाती है, लेकिन गुरु अगर रूठ जाए तो उसे कहीं भी शरण नहीं मिलती. इसलिए जीवन में गुरु का विशेष महत्व होता है. किसके लिए कहा गया है कि आप जिसे भी अपना गुरु मानते हों, गुरु पूर्णिमा के दिन उसकी पूजा करने या आशीर्वाद लेने से जीवन की बाधाएं दूर हो जाती है।

इसी कड़ी में श्री गीता आश्रम मे स्वामी प्रकाशानंद ने गुरु पूर्णिमा महोत्सव बड़े धूमधाम और श्रद्धा भक्ति पूर्वक मनाया गया ।  वहीं गीता आश्रम में इस अवसर पर 1 से 3 जुलाई पर्यंत तीन दिवस का धार्मिक आयोजन संपन्न हुआ, इसके अंतर्गत आश्रम में गीता पाठ रामचरितमानस अखंड पाठ भजन कीर्तन योग सत्र एवं पानीपत ऋषिकेश के कलाकारों द्वारा सुंदर झांकियों का प्रदर्शन किया गया इसके साथ ही भजन कीर्तन एवं प्रवचन का कार्यक्रम भी संपन्न हुआ । अनेक स्थानों से गुरुदेव के भक्तों ने यहां आकर आश्रम संस्थापक ब्रह्मलीन सदगुरुदेव स्वामी वेदव्यासानंद सरस्वती महाराज एवं ट्रस्ट के संस्थापक ब्रह्मलीन स्वामी शान्तानंद सरस्वती की मूर्तियों का पूजन अर्चन किया ,इस अवसर पर ट्रस्ट के अध्यक्ष डॉ दीपक गुप्ता उपाध्यक्ष डॉ भारती गुप्ता सचिव मुनेश त्यागी ट्रस्टी प्रदीप मित्तल हरे कृष्ण भाटिया नरेंद्र कुमार राज नरेश शर्मा गिरीश शुक्ला प्रमिला शाह एवं प्रमुख प्रमुख भक्तों सर्व श्री बीडी गुप्ता उज्जवल गुप्ता राकेश शर्मा अनिल सलवान चंद्र सिंह तोमर मयंक शशि बाला सिंघल सुदेश जी चंद्र मित्र शुक्ल योगाचार्य बृजेश त्रिभुवन उपाध्याय प्रेम प्रसाद लक्ष्मण सिंह पंडित उदय राम गीता चैतन्य बंसी नौटियाल आदि अनेक भक्त स्थानीय लोग आश्रम वासी उपस्थित थे सभी महानुभावों ने पूज्य गुरुदेव की मूर्ति का पूजन अर्चन किया इसके उपरांत विशाल भंडारा कार्यक्रम संपन्न हुआ। कार्यक्रम का संचालन भानु मित्र शर्मा ने किया ।

बताते चले कि आषाढ़ पूर्णिमा के दिन को गुरु पूर्णिमा पर्व के रूप में मनाने की शुरुआत महर्षि वेद व्यास जी के 5 शिष्यों द्वारा की गई. हिंदू धर्म में महर्षि वेद व्यास को बह्मा, विष्णु और महेश का रूप माना गया है. महर्षि वेद व्यास को बाल्यकाल से ही अध्यात्म में गहरी रूचि थी. ईश्वर के ध्यान में लीन होने के लिए वो वन में जाकर तपस्या करना चाहते थे. लेकिन उनके माता-पिता ने इसके लिए उन्हें आज्ञा नहीं दी. तब वेद व्यास जी जिद्द पर अड़ गए. इसके बाद वेद व्यास की माता ने उन्हें वन में जाने की अनुमति दे दी. लेकिन माता ने कहा कि, वन में परिवार की याद आए तो तुरंत वापस लौट जाए. इसके बाद पिता भी राजी हो गए. इस तरह माता-पिता की अनुमति के बाद महर्षि वेद व्यास ईश्वर के ध्यान के लिए वन की ओर चले गए और तपस्या शुरू कर दी।वेद व्यास ने संस्कृत भाषा में प्रवीणता हासिल की और इसके बाद उन्होंने महाभारत, 18 महापुराण, ब्रह्मसूत्र समेत कई धर्म ग्रंथों की रचना की. साथ ही वेदों का विस्तार भी किया. इसलिए महर्षि वेद व्यास को बादरायण के नाम से भी जाना जाता है।

गुरु पूर्णिमा के अवसर पर ऋषिकेश में जयराम आश्रम के ब्रह्म स्वरूप ब्रह्मचारी, मायाकुंड स्थित भगवान गिरी आश्रम बाबा भूपेंदर गिरी, कृष्ण कुंज आश्रम में उत्तराखंड पीठाधीश्वर स्वामी कृष्णाचार्य, जनार्दन आश्रम केशव स्वरूप ,तारा माता मंदिर महंत संध्या गिरी, जगन्नाथ आश्रम में महंत लोकेश दास और भगवान आश्रम में साक्षी महाराज की धूमधाम के साथ भक्तों ने अपने गुरुओं की पूजा अर्चना की।

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