शिव भक्तों के दर्शनार्थ खुले विख्यात नीलकंठ महादेव मंदिर के कपाट

ऋषिकेश,15 जून । कोरोना संक्रमण काल के दौरान कोविड-19 की गाइडलाइन के अनुपालन में मणिपुर पर्वत पर स्थित विख्यात श्री नीलकंठ महादेव मंदिर के बंद किए गए कपाट श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ आज सुबह 9 : 00 बजे से शाम 5 : 00 बजे तक खोल दिए गए हैं।

यह जानकारी श्री नीलकंठ महादेव मंदिर समिति के प्रबंधक सुभाष पुरी ने देते हुए बताया कि कोविड-19 की गाइडलाइन के अनुपालन में मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ बंद कर दिए गए थे, जिन्हें आज से उत्तराखंड निवासियों के लिये उत्तराखंड सरकार द्वारा जारी गाइडलाइन का पालन करते हुए खोल दिया गया है जिसमें मंदिर के दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं को दो गज की दूरी मास्क है ज़रूरी के नियमों का पालन करना होगा।

गढ़वालउत्तरांचल में हिमालय पर्वतों के तल में बसा ऋषिकेश में नीलकंठ महादेव मंदिर प्रमुख पर्यटन स्थल है। नीलकंठ महादेव मंदिर ऋषिकेश के सबसे पूज्य मंदिरों में से एक है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने इसी स्थान पर समुद्र मंथन से निकला विष ग्रहण किया गया था। उसी समय उनकी पत्नी, पार्वती ने उनका गला दबाया जिससे कि विष उनके पेट तक नहीं पहुंचे। इस तरह, विष उनके गले में बना रहा। विषपान के बाद विष के प्रभाव से उनका गला नीला पड़ गया था। गला नीला पड़ने के कारण ही उन्हें नीलकंठ नाम से जाना गया था। अत्यन्त प्रभावशाली यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर परिसर में पानी का एक झरना है जहाँ भक्तगण मंदिर के दर्शन करने से पहले स्नान करते हैं।

बजरंग गंगेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी अर्जुन पंडित ने भगवान शिव की परिक्रमा के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि
भगवान शिव की अर्ध परिक्रमा क्यों.. की जाती है। उनका कहना है कि शिवजी की आधी परिक्रमा करने का विधान है। वह इसलिए की शिव के सोमसूत्र को लांघा नहीं जाता है। जब व्यक्ति आधी परिक्रमा करता है तो उसे चंद्राकार परिक्रमा कहते हैं। शिवलिंग को ज्योति माना गया है और उसके आसपास के क्षेत्र को चंद्र। आपने आसमान में अर्ध चंद्र के ऊपर एक शुक्र तारा देखा होगा। यह शिवलिंग उसका ही प्रतीक नहीं है बल्कि संपूर्ण ब्रह्मांड ज्योतिर्लिंग के ही समान है।
अर्द्ध सोमसूत्रांतमित्यर्थ: शिव प्रदक्षिणीकुर्वन सोमसूत्र न लंघयेत ।।
इति वाचनान्तरात।”
सोमसूत्र
शिवलिंग की निर्मली को सोमसूत्र की कहा जाता है। शास्त्र का आदेश है कि शंकर भगवान की प्रदक्षिणा में सोमसूत्र का उल्लंघन नहीं करना चाहिए, अन्यथा दोष लगता है। सोमसूत्र की व्याख्या करते हुए बताया गया है कि भगवान को चढ़ाया गया जल जिस ओर से गिरता है, वहीं सोमसूत्र का स्थान होता है। उन्होंने बताया कि
क्यों नहीं लांघते सोमसूत्र
सोमसूत्र में शक्ति-स्रोत होता है, अत: उसे लांघते समय पैर फैलाते हैं, और वीर्य ‍निर्मित और 5 अन्तस्थ वायु के प्रवाह पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इससे देवदत्त और धनंजय वायु के प्रवाह में रुकावट पैदा हो जाती है। जिससे शरीर और मन पर बुरा असर पड़ता है। अत: शिव की अर्ध चंद्राकार प्रदशिक्षा ही करने का शास्त्र का आदेश है।

तब लांघ सकते हैं।शास्त्रों में अन्य स्थानों पर मिलता है, कि तृण, काष्ठ, पत्ता, पत्थर, ईंट आदि से ढके हुए सोम सूत्र का उल्लंघन करने से दोष नहीं लगता है,लेकिन
‘शिवस्यार्ध प्रदक्षिणा’ का मतलब शिव की आधी ही प्रदक्षिणा करनी चाहिए। सांसों में यह भी बताया गया है कि किस ओर से परिक्रमा भगवान शिवलिंग की परिक्रमा हमेशा बांई ओर से शुरू कर जलाधारी के आगे निकले हुए भाग यानी जल स्रोत तक जाकर फिर विपरीत दिशा में लौटकर दूसरे सिरे तक आकर परिक्रमा पूरी करें।

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