चित्त शुद्धि और वित्त शुद्धि से सर्वत्र समृद्धि होती है- -स्वामी प्रकाशानंद


चित्त शुद्धि और वित्त शुद्धि से सर्वत्र समृद्धि होती है- -स्वामी प्रकाशानंद

ऋषिकेश,24, जुलाई,। गुरूपूर्णिमा के अवसर पर गीता आश्रम के संचालक मंहत स्वामी प्रकाशानंद ने कहा कि गुरूपूर्णिमा भारतीय गुरू-शिष्य परम्परा का बड़ा ही पावन पर्व है। स्वामी प्रकाशानन्द ने गीता आश्रम में आयोजित गुरु पूर्णिमा के अवसर पर महामंडलेश्वर ब्रह्मलीन स्वामी वेद व्यासानंद गुरू का पूजन भी किया गया ।

स्वामी प्रकाशानंद ने कहा कि गुरूपूर्णिमा, जीवन में गुरूअवतरण और गुरू सत्ता के अवतरण का पावन पर्व है। सनातन काल से लेकर अब तक गुरू परम्परा के अन्तर्गत आने वाली सभी दिव्य विभूतियों और गुरूजनों को कोटि कोटि नमन! आज महाभारत के रचियता पूज्यपाद श्री वेद व्यास जी का प्राकट्य दिवस भी है।उन्होंने कहा कि गुरूपूर्णिमा अर्थात पूर्ण-माँ, ‘माँ’ बच्चे का विकास करती है और ‘गुरू’ जीवन में प्रकाश पैदा करते हैं।

प्रतिवर्ष गुरूपूर्णिमा पर्व हमें याद दिलाता है कि जीवन में जो अन्धकार है उसे गुरू रूपी ज्योति दिव्य प्रकाश से प्रकाशित करती है। जीवन तो विकास से प्रकाश, विषाद से प्रसाद और संशय से श्रद्धा की दिव्य यात्रा है। जब शिष्य का सम्पूर्ण सर्मपण होता है तब गुरू की कृपा का अवतरण होता है।

श्रीमद्भगवद गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है ‘‘कृष्णं वंदे जगद्गुरुम्’’ अर्थात जिससे भी प्रकाश मिले, ज्ञान प्राप्त हो, जो भी श्रेष्ठ और सही मार्ग दिखाये, जीवन के अन्धकार, विषाद, पीड़ा को दूर कर कर्तव्यों का बोध कराये वह गुरु-तत्त्व है और वह गुरु-तत्त्व सबके भीतर विराजमान है। स्वामी प्रकाशानंद ने कहा कि गुरू-शिष्य परम्परा आदिगुरू अंगिरा और महर्षि भृगु, महर्षि अत्रि और अगस्त्य ऋषि जैसे विलक्षण प्रतिभासम्पन्न महानगुरु हुये।

महर्षि शौनक, पुलह, पुलस्त्य आदि अनेक ऋषि हुये जिन्होंने गुरुपद को पवित्र और उत्कृष्ट बनाये रखा और सनातन संस्कृति को गौरवान्वित किया। इस अवसर पर स्वामी बाल योगी आचार्य यशवंत डॉ सुरेश प्रसाद अनिल कुमार श्रीवास्तव सहित अन्य संंतो ने भी ब्रह्मलीन स्वामी वेदव्यासनंद का पूजन किया।

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