गंगा भोगपुर में वन गुर्जरों, घुमंतू पशुपालकों का दो दिवसीय सम्मेलन हुआ प्रारंभ गुर्जरों को उनकी संस्कृति और जीवन शैली से कराया जाएगा अवगत- अवधेश कौशल


ऋषिकेश 24 मार्च  ।उत्तराखंड सेंटर फॉर पेस्टोरलिस्म और वन गुर्जर ट्राइबल युवा संगठन द्वारा आयोजित उत्तराखंड के वन गुर्जरों, घुमंतू पशुपालकों की संस्कृति और जीवन शैली पर आधारित दो दिवसीय सम्मेलन के दौरान वन गुर्जरों की समस्याओं पर विशेष रूप से चर्चा का प्रारंभ हुआ।

गुरुवार को गुर्जरो की समस्याओं पर पर आधारित गंगाभोगपुर मल्ला कोडिया गांव में पद्म भूषण अवधेश कौशल की अध्यक्षता और अमीर हमजा के संचालन में आयोजित दो दिवसीय सम्मेलन का शुभारंभ करते हुए कार्यक्रम के मुख्य अतिथि यमकेश्वर विधानसभा क्षेत्र के विधायक रेनू बिष्ट ने उपस्थिति को संबोधित करते हुए कहा कि पिछले कई दशकों से जंगलों में रहकर अपने बच्चों पालन पोषण कर रहे, घुमंतू पशुपालकों की काफी समस्याएं हैं,जिन का निदान किया जाना अत्यंत आवश्यक है ।

जिनकी संस्कृति और जीवन शैली के संबंध में आने वाली पीढ़ी को भी अवगत कराना चाहिए, कि किस प्रकार उनके बुजुर्गों ने उन्हें पालने के लिए कष्टों को सहा है ।आज उनके सामने अपने पशुओं को जीवित रखने के साथ अपने जीवन को सुधारने का भी संकट वन अधिनियम 1980 के चलते संकट में आ गया है ।जिस का शीघ्र समाधान किया जाना अत्यंत आवश्यक है ।

 

जिसके लिए वह विधानसभा में भी सवाल उठाएंगी। इस अवसर पर मोहम्मद शाहदात ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि यह दो दिवसीय सम्मेलन उत्तराखंड के वन गुर्जरों, घुमंतू पशुपालकों की संस्कृति और जीवन शैली को सभी तक पहुंचाने का एक सार्थक प्रयास है। जिसमें पेस कला ,गुजरी किस्से कहानियां ,मल्टीमीडिया और फिल्म प्रस्तुत कर घुमंतू पशुपालकों को उनकी संस्कृति से परिचय कराया जाएगा।

उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के वन गुर्जर एक घुमंतु समुदाय के रूप में अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं ।जो कि ज्यादातर गुजरी नस्ल की भैंसों का पालन पोषण कर सकें । और इसी के माध्यम से यह लोगअपना जीवन यापन भी कर रहे हैं ।इसी के साथ यह लोग उत्तराखंड के शिवालिक और हिमालय की ऊंची नीची पहाड़ियों में गर्मी हो या सर्दी में मौसम के हिसाब से ऊंची पहाड़ियों पर अपना जीवन व्यतीत करते हैं।

कुछ अपने पशुओं के लिए चारे की तलाश में हिमाचल प्रदेश तक जाते हैं। हालांकि उनकी जीवनशैली और परिवार का यह स्वरूप कई पीढ़ियों से ऐसे ही बना है ।लेकिन अब देश के बाकी घुमंतू पशु पालकों की ही तरह उन्हें भी कई सारी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है ।

यह सम्मेलन चरवाहों और अन्य प्रतिभागियों के लिए आपसी बातचीत में शामिल कर घुमंतु समुदाय के अनुभवों को सुनने और बाहरी लोगों के लिए उत्तराखंड के घुमंतू पशुपालकों के बारे में अधिक से अधिक जानकारी दिए जाने के लिए आयोजित किया गया है ।जिसका लाभ सभी को मिले यह सम्मेलन का उद्देश्य है ।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे अवधेश कौशल ने कहा कि इस सम्मेलन में देश के पांच राज्य उत्तराखंड, जम्मू कश्मीर, महाराष्ट्र ,गुजरात और यूपी से लगभग 300 प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। जिसमें गुर्जर ट्राईबल युवा संगठन महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, जिसकी पहल पर यह सम्मेलन आयोजित किया गया है ।

उन्होंने बताया कि कुमाऊं गढ़वाल और कुमाऊं मंडल के उधम सिंह नगर एवं नैनीताल जनपद तथा गढ़वाल के हरिद्वार, देहरादून ,पौड़ी ,टिहरी ,उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग जनपद में पशुओं के संग स्थाई एवं अस्थाई रूप से प्रवास करने वालो की समस्याओं को लेकर इस सम्मेलन में चर्चा की जाएगी ।जिनके व्यवसाय के रूप में ज्यादातर गोजरी नस्ल की भैंसों को पाला जाता है ,जो कि दूध और दूध से भनी सामग्री को बेचकर ही अपना जीवन यापन करते हैं ।लेकिन सरकारों द्वारा इनकी भूमि तथा अन्य अधिकारों के संबंध में कोई कारगर कदम नहीं उठाया गया है ।जो किइन लोगों के लिए समस्या बनी है ।

सम्मेलन में भाग ले रहे प्रतिभागियों को उनकी पौराणिक जीवन शैली के किस्से कहानियों ,मल्टीमीडिया ऑफ फिल्म के माध्यम से अवगत कराया जाना भी इस सम्मेलन ‌‌‌‌की यह एक पहल है ,किस्सो के माध्यम से उन्हें उनके घुमंतू पशुपालकों के जीवन को बेहतर बनाने और भारतीय घुमंतू पशुपालन की समझ को बढाने का‌‌ भी मकसद इस सम्मेलन का भाग‌ है।

 

इस सम्मेलन में गुर्जरों के ऐतिहासिक जीवन को भी प्रमुखता दी जाएगी। जिसमें 27 मार्च को कुनाओ चोड में पशु मेला भी लगाया जाएगा। सम्मेलन में पहले दिन कासिम कणी, अमीर हमजा, अवधेश कौशल ,अमित राठी, फैजान कोसवाल आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

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