डाॅ निशंक का रचना संसार दो दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन का हुआ समापन भाषा नहीं बोध, प्रतिभा और सृजना से बड़े बनें ,योग मूलक उद्योग करें‌-स्वामी रामदेव संस्कार जीवन का सबसे बड़ा अलंकार -स्वामी चिदानन्द सरस्वती कलम की ताकत अणुबम से भी बड़ी-निशंक


ऋषिकेश,17 अक्टूबर। परमार्थ निकेतन में आयोजित डाॅ निशंक का रचना संसार दो दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन के समापन योगगुरू स्वामी रामदेव महाराज, स्वामी चिदानन्द सरस्वती , की उपस्थिति में रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ और अन्य विशिष्ट अतिथियों ने किया।

सोमवार को योगगुरू स्वामी रामदेव महाराज ने उपस्थिति को संबोधित करते हुए कहा कि ऐेसे सम्मेलन सनातन संस्कृति के गौरव को प्रतिबिम्बित करते हैं। हम अपनी भाषा से नहीं बल्कि अपने बोध, प्रतिभा और सृजना से बड़े बनें। हिमालय के जल, जंगल, जमीन और जवानी को गौरव प्रदान करना जरूरी है। उन्होंने विद्यार्थियों को संदेश देेते हुये कहा कि जो भी करें पूरी प्रामाणिकता के साथ करें। हमारे कार्यो में समग्रता और पूर्णता हो। योग और कर्मयोग से युक्त जीवन जीये तथा योग मूलक उद्योग करें।
योगगुरू ने कहा कि हमारी पहचान किसी विद्यालय या काॅलेज से नहीं होती, बल्कि स्वयं से, अपने व्यक्तित्व से होती है। हमारी वजह से राष्ट्र का गौरव बढ़े यह जरूरी है। उन्होंने हिमालय को सहेजने का संदेश देते हुये कहा कि हिमालय से खूबसूरत कोई स्थान नहीं है अतः अपने गावों और अपनी मातृभूमि की ओर लौटे। उन्होंने हिमालय में ‘ऋषि ग्राम’ के रूप में दुनिया के सर्वश्रेष्ठ ग्राम के निर्माण की घोषणा की।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती  ने कहा कि शिक्षा और दीक्षा चले साथ-साथ। संस्कार जीवन का सबसे बड़े अलंकार है। नई शिक्षा नीति जीवन नीति है। स्वामी जी ने आह्वान किया कि हमारी वैदिक शिक्षा वैश्विक शिक्षा है; वैलिड शिक्षा है। यह वैदिक विज़न और वैदिक विज़डम की नीति है।
स्वामी ने माँ; मातृभाषा और मातृभूमि से जुड़ने का संदेश देते हुये कहा कि शिक्षा नीति में इसका समावेश किया जाना जरूरी है क्योंकि यही 2020 है। आने वाले समय में हमें कल्चर, नेचर और फ्यूचर को बचाना है तो शिक्षा नीति 2020 पर विशेष ध्यान देना होगा। ने कहा कि वैदिक शिक्षा में आध्यात्मिकता और वैज्ञानिकता, चिकित्सा और स्वस्थ दिनचर्या के अलावा स्वाधीनता और समानता का भी स्पष्ट उल्लेख किया गया है। वेदों में उत्कृष्ट नीतिशास्त्र का वर्णन किया गया है ।जो कि हर युग के लिये प्रासंगिक है। भारत की माटी और जल में समाहित दिव्य वेद मंत्रों की ध्वनि और नाद के प्रभाव से ही भारत सदियों से पूरे विश्व को शान्ति का संदेश देता आ रहा है। भारत ने वेद से विमान तक प्रगति की और वह प्रगति शान्ति पर आधारित रही है अर्थात हमारे मूल में शान्ति और हमारी प्रगति का आधार भी शान्ति है इसलिये वैदिक शिक्षा की ओर लौटना आवश्यक है।
रमेश पोखरियाल निशंक ने साहित्य, विज्ञान, प्रकृति, संस्कृति, लोकल से ग्लोबल की यात्रा और आत्मनिर्भर भारत आदि पर चर्चा करते हुये कहा कि यह आयोजन एक साहित्य कुम्भ है क्योंकि कलम की ताकत अणुबम से भी बड़ी होती है।
उन्होंने भारत के लगभग सभी राज्यों, चीन, नीदरलैड़ और अन्य राष्ट्रों से आये कुलपतियों और साहित्यकारों का अभिनन्दन करते हुये कहा कि इस सम्मेलन से आनलाइन प्लेटफार्म के माध्यम से 35 से अधिक देशों के साहित्यप्रेमियों ने जुड़कर इस दिव्य कार्यक्रम का आनन्द लिया। निशंक ने कहा कि परमार्थ निकेतन का प्रागंण सृजन का केन्द्र है तथा हमारे विश्वविद्यालय दृष्टि और अनुशासन के केन्द्र है।
योगगुरू स्वामी रामदेव और स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने 35 से अधिक विश्वविद्यालयों के कुलपति और प्रोफेसर्स को रूद्राक्ष का पौधा भेंट कर सभी अतिथियों का अभिनन्दन किया। सभी ने परमार्थ गंगा आरती में सहभाग किया।

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