ऋषिकेश,14 जनवरी । कोविड-19 की गाइड लाइन के चलते मकर सक्रांति पर गंगा स्नान करने वालों पर लगाई गई रोक के बावजूद ऋषिकेश के त्रिवेणी घाट पर लोगों की भावनाओं को देखते हुए जहां उत्तराखंड के विभिन्न स्थानों से आए निशान और देवताओं की डोलिया को सांकेतिक रूप से स्नान कराया गया। वहीं स्थानीय नागरिकों के लिए गंगा स्नान पूरी तरह से प्रतिबंधित रहा। शुक्रवार को मकर संक्रांति के अवसर पर गंगा स्नान करने वाले श्रद्धालु गुरुवार की शाम से ही ऋषिकेश पहुंचने प्रारंभ हो गए थे ,लेकिन प्रशासन द्वारा कोविड-19 के चलते त्रिवेणी घाट को श्रद्धालुओं के लिए पूरी तरह सील कर दिया गया था।
जिसके चलते स्थानीय नागरिकों को गंगा स्नान नहीं करने दिया गया ।वहीं प्रशासन ने उत्तराखंड से आने वाले तमाम देवताओं की डोलियों के अलावा भाला निशान को धार्मिक दृष्टि से सांकेतिक रूप से सीमित दायरे में रहकर सांकेतिक रूप से पूजा अर्चना के करने के साथ स्नान कराए जाने की छूट दी गई थी।
जिसके चलते ऋषिकेश त्रिवेणी संगम पर षड्दर्शन साधु समाज अखिल भारतीय सनातन धर्म रक्षा समिति के बैनर तले संत प्रातःकाल 4 बजे श्री सिद्ध गणेश भगवान के पास पहुंचे, जहां उत्तराखण्ड़ से श्री नर सिहं भगवान और दोनो देवता ने देव भूमि महाकुंभ 2022 का प्रथम स्नान करने के बाद संत देव प्रयाग के लिए रवाना हुए, इस अवसर पर राष्ट्रीय अध्यक्ष महन्त गोपाल गिरी , उत्तराखंड के प्रदेश अध्यक्ष महन्त भूपेन्द्र गिरी ,महन्त भोला गिरी , स्वामी परीक्षित गिरी, स्वामी नन्हे दास , मनोहर स्वामी मौजूद थे।
जिन्होंने सोशल डिस्टेंस का पालन करते हुए गंगा स्नान के लिए प्रशासन ने कोरोना की तीसरी लहर के चलते रोक दिया था , जिन्हें बाद में एक एक कर गंगा स्नान करने की छूट दी गई । गोपाल गिरी ने बताया कि मकर सक्रांति पर गंगा स्नान करने के लिए उनके लगभग 50 महात्मा हरिद्वार मे , हरियाणा ,पंजाब , राजस्थान , उ.प्रदेश से पहुंचे हुए है । जिन्हें वही रोक दिया गया है। वही मकर सक्रांति पर कोविड-19 का पालन का जाने के लिए और स्थानीय कोतवाली प्रभारी रवि कुमार सैनी स्वयं प्रातः 4:00 बजे से पुलिस बल के साथ त्रिवेणी घाट पर उपस्थित रहे जिनके नेतृत्व में ऋषिकेश त्रिवेणी घाट पर जाने वाले सभी मार्को पर नाकेबंदी की गई थी जिसके किसी को भी त्रिवेणी घाट की और नहीं जाने दिया जा रहा था । यहां तक कि मकर सक्रांति पर स्नान करने के उपरांत दान पुण्य करने वालों लोगों को भी भारी हसीनाओं का सामना करना पड़ा। जिसके कारण भाग लेने वाले पंडितों और भिखारियों को भी काफी परेशानी हुई।